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(८३) जीव जणाय नहि. जेम बुद्धिथी अग्नि उत्पन्न कर्यो; पण ककडा करवाथी अग्नि देखायो नहि. तेम जीव ककडा करवाथी देखाय नाहि. ज्ञानवान् पुरुषना ज्ञानथी जीव जणाय..
परदेशी राजाए प्रश्न कर्यु जे-आ दृष्टांत बताव्यां पण प्रत्यक्ष हाथमां झालीने जीव बतावो तो हुं मानु.
केशी महाराजे उत्तर आप्यो जे आ झाडना पानडां शाथी हाले छे ? कोइ देवता प्रमुख हलावे छे ? परदेशी राजाए कह्यु जे वायुथी हाले छे. त्यारे केशी महाराजे कयुं जे-पवनने तुं देखे छे ? राजाए कह्यु जे हुं नथी देखतो. त्यारे गुरुए कह्यं जे-जेम पवन नथी देखतो; पण माने छे, तेम जीव देखातो नथी; पण लक्षणथी जणाय छे ने केवलज्ञानी महाराज प्र. त्यक्ष देखी शके छे, बीजा देखी शकता नथी. एवी युक्तिथी केशी महाराजना धर्मोपदेशथी परदेशी राजाए नास्तिक मत छोडी दीधो ने जीव अ. जीवादि नव तत्वनी श्रद्धा करी श्रावकनां व्रत लीधां.
आ मुजबना घणी एक रीते नास्तिकवाद शास्त्रमा निराकरण करेला जोया छे, सांभल्या छे, तेथी प्रभुना मार्ग तथा आगम उपर पूर्ण आस्ता थइ छे. स्वप्नामां पण संशय नथी, ते आस्तिक्यता लक्षण जाणवं.
ए पांचे लक्षण सम्यदृष्टिने होय. ते विचारवां अने न होय ते प्रगट करवानो उद्यम करवो. मुख्य उद्यम ए छे के हरेक धर्मनी वातो सांभ. लीने आत्मामां विचार करवो के म्हारामां आ गुण नथी माटे प्रगट करवानो उद्यम करुं. पण सम्यक्दृष्टिनी धर्म सांभली पर उपर नजर न जाय के अमुक निर्गुणी, ए तो जे जे पुरुषमा गुण छे ते ग्रहण करे. अ. न्यदर्शननी पण सारी रीत होय ते निंदे नहि. ते उपर उपाध्यायजीए का छ जे ' दर्शन सकलना नय आहे ' एटले जे जे दर्शनवाला जे जे नये धर्म करता होय, ते नय विचारथी ते जाणी ले ने पोते पोताना साते नयना विचारमा रहे. वली जैनदर्शनमां पण पंचमकालना प्रभावे कदापि क्रिया फेरफार देखाय; तो पण मध्यस्थदृष्टि राखवी पण एकांत
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