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( ६६ ) तेथी जीव पाछां एथी वधारे आकरां कर्म बांधे छे अने जे धर्मिष्ट जीव छे ते तो दुःख आवे छे त्यारे पोताना कर्मनो दोष काढे छ के, पाछले भवे में अज्ञानपणे दुष्ट आचरण कस्यां हशे तेथी ते कर्म म्हारे भोगवबुं ज जोइये. जेम सरकारनो गुन्हो कस्यो होय अने तेनी शिक्षा करी होय तो ते सरकारना हुकम प्रमाणे जो ते शिक्षा न भोगवीये, तो सर. कार वधारे शिक्षा करे: तेम जो हं विकल्प करीश ने समभावे एवं दुःख नहि भोगवू तो पाछां नवां कर्म बंधाशे तो म्हारो आत्मा वधारे मलीन थशे. माटे म्हारे तो जे जे दुःख श्राव्यां छे ते ते समताभावे भोगववां के जेथी हवे एवां कर्म बंधाय नहि. एवी वर्त्तना करवी. वली भावना भावे जे हुं तो चेतन छु, अनंतज्ञान दर्शन चारित्रवंत म्हारो आत्मा छे ते जडनी संगते में नहि करवा योग्य काम कर्या पण ते दिवसे मने म्हारा आत्मानुं ज्ञान हतुं नहि, हवे तो हुं जाणुं डु के म्हारो जाणवानो धर्म छे ते सुख दुःख जे आवे ते जाणवू; पण मने दुःख थाय छे, पीडा थाय छे, एवा विकल्प करवा ए म्हारो धर्म नथी. एवा विचारो करी समभावमां रहे छे तेने तो पर्वनां बांधेलां कर्म पण नष्ट थइ जाय छे ने नवां कर्म तेने बंधातां नथी. वली जे महा मुनिराज छे, ते तो पोताना ज्ञान ध्यानमा तत्पर रहे छे तेथी पोतानो स्वभाव छोडी दुःख तरफ तेमन ध्यान जतुं ज नथी एटले सहजे तेमने विचार करवो पडतो ज नथी. जेम के कोइ माणस भवाइ, नाटक जोवा जाय छे त्यां उभा उभा पोताना पग दुःखे छे पण तमासो जोवामां ध्यान छे त्यां सुधी पोताना पग दुःखता उपर लक्ष जतुं नयी, तेम ज मुनिमहाराज पण पोताना आत्मतत्वना ध्यानमां लीन थइ गया छे तेथी दुःख वेदनामां उपयोग जतो ज नथी, एवा पुरुषो तो ध्यान प्रभावथी पोतानां बांधेलां निकाचित कर्मने शिथिल करी नांखे छे ने पछी जलदी ते कर्मनो नाश करी मुक्ति पामे छे. तेम आत्मार्थिए तो जेम वधे तेम समभाव वधारवो. तेथी कर्म नाश थइने प्रात्मानी मक्ति थशे, त्यारे अव्याबाध सुखनी प्राप्ति थशे. ए रीते वेदनी. कर्मनुं स्वरूप जाणवू.
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