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( ६० ) नुष्यनां दुःख तो जुछो के घेडाने रात्री दिवस नरक उपाडवुं पडे छे ने तेने एवं खावानुं मले छे, वली केटलाकने पहेरवा वस्त्र पण मलतां नथी. टाढ - तापनां दुःख भोगववां पडे छे. केटलाएकने कोढरोग, जलोदर, विस्फोटक, दम विगेरे रोग थाय छे. केटलाएकनुं शरीर बाए फूली जाय छे हतुं फरातुं नथी. एवी अनेक रोगनी वेदनाओनुं दुःख रात्री दिवस सहन थतुं नथी तेनी बूमो मास्या करे छे रडे छे; तो आवा सख्त दुःख पापना योगथी पाम्या छे. तेम ज वधारे पापथी नरकनां दुःख नास्तिक शिवायना सर्वे धर्मवाला माने छे. माटे ए शंका करवा जेवुं नथी. पापनां फल तो अवश्य भोगववां ज पडशे. माटे जेम बने तेम राग द्वेषनी परिणति ओछी करवी के जेथी पाप श्रोतुं बंधा अने अनुक्रमे सर्व प्रकारे राग द्वेषथी मुक्त थवाय.
sai कोइ प्रश्न करे जे देवनी गति संजलना कषायथी बंधाय तो सम्यक्वष्ठिने अप्रत्याख्यानादिकनो उदय तथा श्रावकने प्रत्याख्यानादिकनो उदय कह्यो छे, तो शी रीते देवगति बांधे ? ते विषे समजवुं जे, जे वखते देवगतिनुं आयुष्य बांधे त्यारे संजलना कषायनो उदय होय, बीजा कवायोनुं गौणपणं होय. एम ज मिध्यादृष्टिने पण समजवु. दर्शनमोहनी त्रण प्रकारे. सम्यक्तमोहनी, मिश्रमोहनी, मिध्यात्वमोहनी, पहेलां मिध्यात्वमोहनीनुं स्वरूप लखीए छीये. जे जीवे मिध्यात्वमोहनी कर्म बांधेलं छे, तेना प्रभावे अढार दोष रहित एवा जे वीतरागदेव तेना उपर द्वेष
छेने ए अढार दूषण सातमा प्रश्नमां लख्यां छे तेवा दूषणवाला देवने देव माने छे. वली गुरु जे हिंसामां तत्पर, मृषावाद बोले, चोरीनो पण नियम नथी, मैथुनमां प्रत्यासक्त, परिग्रह जे धन अने स्त्री राखे छे वली जेने तृष्णा पण रात्री दिवस बनी रही छे, सेवकने उपदेश दे छे ते पण धनादिकना लाभने अर्थे; एवा निर्गुणीने गुरु तरीके स्थापे तेने तरण तारण माने छे, ने जे पुरुषोए ए पांचे अत्रतनो त्याग कस्यो छे अने पंच महाव्रत अंगीकार करयां छे, पांच इंद्रियोना तेवीश विषय छांड्या छे,
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