________________
( ५७ )
छे अने हुं चैतन हुं ” आवी रीतनो विचार करी पोते शोकथी मुक्त रहें छे. तेने कर्मबंध पण थतो नथी ने संपूर्ण शोकनो नाश तो क्षपकश्रेणिमां थाय छे. दुगंछा ते दुर्गंध वस्तु देखी मुख बगाडवुं तथा जे जे वस्तु पो. ताने न गमे तेथी मुख बगाडवं ए दुगंछा छे. हवे जे पुरुषोए पोतानो आत्मधर्म जाण्यो छे ते पुरुष तो दुर्गंध जोइने कहे छे के ए पुद्गल एवा धर्मना छे. एमां हुं शा वास्ते मुख बगाडुं ? वा जड पदार्थ उपर शा वास्ते द्वेष करूं? इहां कोइ कहेशे जे त्यारे शुं गंदकीमां ज बेसी रहेनुं ? तेनो जवाब के गंदकीना पुद्गल शरीरमां प्रवेश करवाथी रोगनी उत्पत्ति थाय छे. वास्ते प्रथम तो पोताना घरमां खालकूवा संडास विगेरे गंदकीवाली चीजो राखे ज नही. वली मोरीओ पण साफ राखे. पाणी विगेरे वापरे ते पाणी सूकी निर्जीव जग्याए छूटुं छूटुं नांखे के तुरत सुकाइ जाय अने गंदकीमां जीवनी उत्पत्ति थाय छे ने तेना उपर पाणी विगेरे पडवाथी ते जीवन विनाश थाय छे, तो श्रात्मार्थी पुरुषे तो कोइ जीवने दुःख थाय एवं काम कर ज नहि. माटे एवी गंदकी घरमा राखे ज नहि. ने ज्यां एवी जग्या होय त्यां रहे नहि; पण दुनियामां बधी जग्या कांइ स्वच्छ होती नथी, त्यारे तेवी दीठामां आवे तो द्वेष करे नहि, तेमने तो अनुकमे सर्वथा दुगंछा मोहनीनो नाश थाय छे ने जीवो अनेक प्रकारे एवी दुगंछा कस्या करे छे तेथी कर्म बांधीने आागल एवां ज कर्म भोगववां पडशे: माटे जेम बने तेम दुर्गछानो त्याग करवो. स्त्रीवेद ते स्त्रीए पुरुषनो अभिलाष करवो, पुरुषवेद ते पुरुषे स्त्रीनो अभिलाष करवो, नपुंसक वेद ते स्त्री तथा पुरुष बन्नेनो अभिलाष करवो ए त्रण वेद छे, ते ज संसारनं 'बीज छे. तेमां सर्वथा आकरा वेदनो उदय नपुंसक वेदवालाने छे ए रात्रि दिवस विकारमां जचित्त राखे छे एने शांत थवानुं कारण ज नथी तेथी इच्छाओ थया ज करे छे. ते करतां स्त्रीने ओछो विकार छे, ने ते करता पुरुषने श्रोछो विकार छे. हवे कोइने शंका थाय जे पुरुषो प्रार्थना करता जोइए छीए पण तेटली स्त्री प्रार्थना करती जोता नथी. ते विषे जाणवुं जे
Scanned by CamScanner