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५६ ) वो. सर्वथा त्याग तो ज्यारे जीव केवलज्ञान पामवा क्षपकश्रेणी मांडे त्यारे ज थाय. रति मोहनी ते पुद्गलिक पदार्थथी जे जे अनुकूलता मले तेनाथी राजी थबुं. अरति ते प्रतिकूल पदार्थथी दिलगीर थवं. भयमोहनी ते भयथी वारंवार बीना करवुं. म्हाराथी उपवास थशे के नही थाय ? वली म्हाराथी श्रावकपणु, मुनिपणं केम बने ? एम बीहे अने धर्मना कार्यमा वीर्य फोरवे नहीं; जे जे चीज नही करेली होय ते अभ्यासथी बने छे पण बी
ने भयथी अभ्यास करे नही तो कोइ दिवस बने नही. तेमज संसारी कार्यमा पण जेने मोहनीनो भय उदय छे ते दरेक काममां बीना करे.
अहिं कोई प्रश्न करे के पापथी बीहे तेनुं केम ? ते विषे समजवुं के पापथी अवश्य व्हीव्रं जोइए. धर्मथी व्हीव्रं नही. हिम्मत राखी उद्यम करवो. शरीरादिकें रोग प्रमुख होय तो विचारीने काम कर. छतीशक्ति व्हीने बेसी रहे, तेनाथी कोइ काले धर्म सधाय नही. वास्ते भयमोहनीनो जेम बने तेम त्याग करवो. शोकमोहनी ते कोइ पोताना कुटुंब अथवा मित्र मांदा थाय अथवा मृत्यु पामे त्यारे शोकातुर थाय, रडे, कूटे, अनेक प्रकारना विकल्प करे तेथी घणां कर्म बंधाय छे. वली वेपारमां नुकशान था, अथवा कोइ देवालुं काढे अने पोतानुं द्रव्य जाय त्यारे शोक करे छे. पोताने अनुकूल घर, मकान, नोकर, वाहन नही मलवाथी अथवा प्रतिकूल मलवाथी पण शोक थाय. आमां जेने मोहनीकर्मनुं जेवं जोर ते प्रमाणे शोक थाय छे. केटलाक उत्तम पुरुषोने शोकमोहनी ओछी थाय तो विचारे छे जे " आ कुटुंब, देह, घर, प्रमुख जे जे संसारी पदार्थ छे, ते सर्वे अस्थिर छे; अस्थिर पदार्थनो विनाश तो थवानो छे तो म्हारे शा सारू विकल्प करवा जोइए ? ज्यां सुधी पुन्योदय हतो त्यां सुधी सर्व पदार्थ स्थिर रह्या, पापनो उदय थयो त्यारे नाश धया, माटे शा सारू शोक करीने कर्म बांधवां ? श्रात्मधर्म ज म्हारो छे. बीजी कोइ वस्तु म्हारी नथी, मात्र संसार म्हाराथी छोडातो नथी तेथी हुं म्हारु म्हारुं कहुं हुं अने व्यवहारोचित वर्त्तना करुं हुं. वस्तुधर्मे वस्तुमात्र जड
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