________________
(80)
शकावानुं नथी. कारण के समुद्रमां विशेष आगल जइ शकातुं नथी. कोलंबसे अमेरिका शोधी काढ्या अगाउ ते देश प्रख्यातिमां नहोतो. हजु पण केटलीक नवी जग्याओ इंग्रेज साहसीको शोधी काढे छे तेम वली आगल पण जेनाथी महेनत बनी शके ते नवी शोध करे. वारते नजरे दीढुं तेटलं ज बस केम कहेवाय ? सर्व जमीननुं ज्ञान तो जेने अंतरंगथी कर्म क्षय थइ गयां होय तेने ज होय छे. ज्यारे मंत्र साधन करीए छीए त्यारे ते मंत्रना अधिष्ठायक देवता कांइ आपणा शब्द सांभलता नथी पण तेने श्रापणा करतां विशेष ज्ञान छे, ते ज्ञानथी ते जाणी शके छे के "म्हारुं कोइए स्मरण कयुँ छे " तेथी आवीने श्रापणुं कार्य करे छे. तेम देवताथी पण अधिक ज्ञान सर्वज्ञने छे तेथी तेमणे असंख्याता द्वीप समुद्रनुं स्वरूप बताव्युं छे, गया कालनुं पण स्वरूप बताव्युं छे. वली कर्मनुं स्वरूप, कर्मनी वर्गणानुं स्वरूप, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकायनुं स्वरूप, कालनुं स्वरूप तथा श्रात्मानुं स्वरूप घणा विस्तार पूर्वक बताव्यं छे. ते बीजा शास्त्रमां जणातुं नथी. ए अधिकार कर्मग्रंथ, कम्मपयडी, पंचसंग्रह, तत्वार्थ, सम्मतितर्क, विशेषावश्यक विगेरे शास्त्रमां छे. ते जोशो तो जणाशे के जैनशास्त्रमां केटलुं सूक्ष्म ज्ञान बताव्युं छे ? वर्त्तणुक विषे जाणबुं जे पूर्वे अढार दूषण बताव्यां छे ते जोशो तो जणाशे के यात्रा दूषण रहितनी केवी प्रवृत्ति होय ? वधारे तो सिद्धांतमां चरित्रो छे ते जोशो तो माल पडशे के जेने कोइ पण प्रकारनी वांछा नथी, मात्र उपकारी बुद्धि ज छे, स्त्री धन विगेरेनी इच्छा तेम ज संगत नथी, वली पोताने म्होटाइ पण नथी. एवा देवने देव कहेवा योग्य छे वली जे जीव पोताना आत्मानुं ज्ञान मेलवी राग द्वेषनो त्याग करे ते कर्मथी मूकाय. श्रहियां एम नथी कह्युं के मने मानशो तो ज काम थशे; जे आत्मानी शुद्ध परिणती प्रमाणे वर्त्तशे तेनुं काम थशे. श्रावी रीतनो जेमनो शुद्ध उपदेश छे सेमनी बतावेली बाबतो घणी ज वल्लभ लागे छे. अमारा कहेवाथी कांइ बिशेष नथी. न्याय बुद्धि धारण करी निर्पक्षपातपणे जैनशास्त्र तथा
Scanned by CamScanner