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गति मले छे. तेथी ओलुं पुन्य बांध्युं होय तो मनुष्य गति मले छे. पाप बांध्युं होय तो एकेंद्रि, बेरेंद्रि, तेरेंद्रि, चौरेंद्रि, तिर्यचपंचेंद्रि प्रमुख थाय छे. बली वधारे पाप बांध्युं होय तो नरके जाय छे. एवी रीते जे गतिमां रहिने जेवां कृत्य कयीं होय तेवां बीजी गतिमां फल मले छे. ईश्वर क
ना संयोग विना एकने माणस ने एकने जनावर केम बनावे ? बधा सरखा बनाववा जोइए. ते तो देखातुं नथी, वास्ते आवुं मानवुं श्रमारा विचार प्रमाणे तो व्याजबी लागतुं नथी. जे सर्वज्ञ चार गतिनुं रूप बतावे छे तेज व्याजबी लागे छे. सर्वज्ञना कहेवामां कांइ फेरफार होय नहीं, पण जेने सर्वज्ञपणुं प्राप्त थयुं न होय तेने सर्वज्ञ मानवाथी फारफेर आवे छे. तेनो कांइ उपाय नथी. परंतु अर्थि जीवे तो सर्वज्ञनी ओलखाण करवानो उद्यम जरूर करवो जोइए. कारणके बधी वात प्रत्यक्ष नथी. जे जे रूपी पदार्थ छे तेनुं तथा गये काले थइ गयेली बाबतनुं अने ते काले थवानी बाबतनुं अनुमान थोडुं थइ शके. विशेष तो तेमना कहेवा प्रमाणे मानवुं पडे. ते सारु सर्वज्ञनी वर्तणुक, तेमनो उपदेश, ज्ञान तथा तेमनां शास्त्र ए चारे वस्तुनी तपास करवी. पछी जे शास्त्रमां उत्तम ज्ञान होय तेने प्रमाण करवुं. उंचा ज्ञानवालानी प्रवृत्ति पण सारी होय ज अने ते प्रमाणे चालवाथी आपणं पण कार्य सरी शके. ५१ प्रश्नः - जैनशास्त्रमां शुं शुं विशेष छे ?
उत्तर :- जैनधर्मना सर्वज्ञे स्वर्गना स्वरूपनुं वर्णन जेटलुं बतां छे तेटलुं कोइ अन्यशास्त्रमां बताव्युं नथी. नरकना भेद, त्यांनी वर्त्तनानुं स्वरूप, तिर्यचनुं स्वरूप तथा मनुष्यनुं स्वरूप पण जे जे रीते वर्णव्युं छे तेवी सूक्ष्म रीते कोइ शास्त्रमां वर्णव्युं नथी. ए स्वरूप आ ठेकाणे लखतां विस्तार थइ जाय. जीवाभिगम, पन्नवणा, समवायांग, सूयगडांग विगेरे सूत्रोमां घणा विस्तार सहित तेनुं स्वरूप आप्युं छे. तिर्छौलोक जेमां आपणे रही छी मां समुद्रनी हद कोइ देखे तेटली कहे छे. आगल शुं हशे ? ते विचारी शकता नथी. कंइ पण होवुं तो जोइए ज, पण ते चर्मचक्षुथी देखी
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