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काउस्ग्ग पारी एक थुइए अथवा चार थुइए अथवा आठ थुइए जेवी शक्ति - श्रवकाश होय ते प्रमाणे चैत्यवंदन करवुं. आ सामान्य विधिए प्रभुनक्ति कही. पछी प्रभु सन्मुख उभा रही श्रागल कही छे तेवी
ते भावना भाववी. घणा गुणी आचार्य महाराज श्लोकबद्ध-काव्यबद्ध रचना भगवंतना गुण रूप करी गया छे ते वडे स्तुति करवी. एवी सुंदर भावना भाववाथी नागकेतु विगेरे केवलज्ञान पाम्या छे. तेनी कथा कल्पसूत्रमां विद्यमान छे.
२८ प्रश्नः - पुष्पपूजा करतां पुप्पना जीवने बाधा थाय तेनुं केम ?. उत्तरः- पुष्पना जीवने बाधा थती नथी, पण उलटी रक्षा थाय छे. केम के पुष्प कोई गृहस्थ लइ जाय तो मनुष्यना स्पर्शथी तेना जीवने किलामना था. केटलाएक गृहस्थो सय्यामां बिछात्री सुवे छे तेथी पण किलामना थाय छे, परंतु जे पुष्प प्रभुने चड़े छे तेने तो पोताना आयुष्य सुधी अबाधा रहे छे. वली तमे कहेशो के पुष्पने सोय भोंकी गूंथवाथी किलामना थया वगर रहे नहीं, तो ते विषे जाणवुं जे, जे पुष्पनी दांडी पोली होय तेमां दोरों परोववो शास्त्रमां कह्यो छे माटे तेवी रीते विधि युक्त काम करवाथी बाधा थशे नही. पुष्प शीवीने चडाववानी तथा काची कलीओ चडाववानी रीत प्राचीन जणाती थी, पण श्राधुनिक छे. एवी रीत पड़वाथी केटलीक वखत गूंथेला पुष्प मलतां नथी त्यारे विधिपूर्वक पूजा करवाना रसिक पुरुषने पण शीवेलां चडावत्रां पडे छे, ते अपवाद समजने चडावे छे. कारण के जो ते न चडावे तो समूलगो फूलनो हार चडी शके नही माटे जोग बने त्यां सुधी गूंथेलां पुष्प चडाववां ए ज श्रेय छे. प्रभु भक्ति विधिपूर्वक करतां कदापि अपहिंसा थाय ते उपर आवश्यकमां कुवानुं दृष्टांत आप्युं छे. कूत्रो खोदतां कष्ट पडे पण प्रांते मुक्ति सुखनी प्राप्ति थाय. माटे श्रावकने अष्टप्रकारी पूजा करवानुं महानिशिध्थ सूत्रमां पण कह्युं छे.
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