________________ __ . ( 288 ) तेमनां चरित्र भावी कामने शांत करे, पछी नवकार मंत्र समरतो मी ते पण स्त्रीनी जोडे नहीं. आ नियम गंठसी अथवा मुठसी करीए तेम एक नवकार गणी न पाले, त्यां सूधी अभिग्रह छे. आ विधि सारी लागे छे. मरण थाय तो आराधक थइ जाय. माटे रोन कर योग्य , मांदगाने अवसरे तो विशेष करवा योग्य छे. // दोहा // परम देव परमातमा, बुद्धि आत्मगुरु राय // एह परमपद सेवतां, अनुपानंद थवाय // 1 // इति श्रीभरुच नगर निवासी शेठ अनुपचंद मलुकचंद संग्रहित श्री प्रश्नोत्तर रत्नचिंतामणि समाप्त. न-दर रविवारे प्रसिद्ध यतुं एकलुं अठवाडिक पत्र-वाणि लवाजम टपाल साये रुपिया त्रण. पत्र व्यहवार-मालीक-जेन अमदावाद Scanned by CamScanner