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(२८५) चार शरण करवा ते आ प्रमाणे-- क्षीणरागादि दोषौषाः, सर्वज्ञा विश्वपूजिता ॥
यथार्थवादिनार्हतः, शरण्या शरणं मम ॥१॥ अर्थ-क्षीण कर्या के रागादि दोषना समहो जेमणे, सर्व वस्तुना जा. ण, विश्वे पूजेला, यथार्थवादी अने शरण करवाने योग्य एवा अरिहंत भगवान- मने शरण थाम्रो ॥१॥ ध्यानानिदग्धकर्माणि, सर्वज्ञा सर्वदर्शिनः ॥ अनंतसुख वीर्येधाः, सिद्धाश्च शरणं मम ॥ २॥
अर्थः-ध्यान रूपी अमिये करी बाली नाल्यां के कर्म जेमणे,सर्व वस्तुना जाणनार तथा देखनार, अनंत सुख अनंत वीर्य युक्त एवा सिर भगवाननुं मंने शरण थाओ ॥२॥
साधुजी, शरण आ प्रमाणेज्ञानदर्शनचारित्र, युता स्वपर तारकाः ॥ जगत्पूज्याः साधवश्व, भवंतु शरणं ममः ॥३॥
अर्थ:-ज्ञान, दर्शन, चरित्र करी युक्त, परने अने पोताने तारनार अने प्रण जगत्ने पूजनिक एवा साधुनुं मने शरण थाओ. ॥३॥
धर्मनुं शरण आ प्रमाणेसंसार दुःखसंहर्ता, कर्ता मोक्षसुखस्य च ॥ जिनप्रणीतधर्मश्च, सदैव शरणं मम ॥४॥
अर्थः-संसार रूपी दुःखनो नाश करनारा अने मोक्षसुखने कर. नारा ( आपनारा) एवा जिनप्रणीत धर्मनुं मने सदाय शरण थामो.
ए रीते चार शरण करीने पछी था प्रमाणे भावना भावेचउरंगो जिणधम्मो, न कओ चउरंगसरणमाव न कयं ।
चउरंग भवच्छेओ, न कत्रो हा हारिओ धम्मोति ॥॥ अर्थ:-दान, शील, तप अने भाव रूप चार अंगवालो पर्व में न कयों! चार शरण पण न की ! अने चार गति रूप भवनो छेद
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