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(१४) वांधी परभवमां केवां दुःख भोगवयां पडे ? तेनुं वर्णन तो ज्ञानीमहा. राज ज करी शके. माटे यथाशक्ति विषयनो संकोच करवो, आ प्रमाणे मार्गानुसारीना पांत्रीश गुण जे पुरुषमा होय, ते पुरुष धर्मने योग्य जाणबो. बाबा गुणथी मनुष्य ममकितवंत थाय छे, श्राद्धधर्म अने मुनिधर्भने पामे छे अने अंते मुक्तिसुखने मेलवे छे.
२१ प्रश्नः-समकित ए शंछे ? · उत्तरः-समकितना घणा प्रकार छ, पण अल्पमात्र कहुं छं. समकितना मुख्य ये प्रकार छे. १ व्यवहार समकित ने २ निश्चय समकित. तेमा व्यवहार सनकित ते पागल कहेला अढार दूषण रहित ऋषभादि चोवीश ती करने शुद्ध देव' तथा तरण तारण जहाज रूप मानवा. जे देव संतार थकी तस्या नथी, तेबाने देवबुद्धिए मानवा नहीं; प्रभुए मुनिनो जे मार्ग बताव्यो छे, ते मार्गे चालनारने गुरुबुद्धिए गुरु मानवा: साधु अने श्रावकनो धर्म प्रभुए जे प्रमाणे बताव्यो छे, ते धर्भने ज खरो मानवो. श्रावण तत्व उपर श्रद्धा राखवी ते व्यवहार ममकित..२ निश्चय समकित, ते प्रथम पोताना आत्मानुं स्वरूप अने पुद्गलनु स्वरूप जाणवू. आत्मामां चेतन गुण छे अने पुद्गलमा जड गुण छे. तेथी
आत्मामा सर्व पदार्थ जाणवानी शक्ति छे, पण कर्मे करीने आत्मा अ. वरायो छे तया हाल संपूर्ण भाव जाणी शकतो नथी. एवो निर्धार थवाथी जे जे बाह्य पदार्थो छे, तेना उपरथी मोहनो नाश करें छे. फक्त श्रात्मगुणमां आनंद माने छे. जे संसारी आनंद छे, ते सर्वे अस्थिर श्रानंद छे, अने तेने खरो प्रानंद मानबाथी कर्मबंध थाय छे ने दुर्गतिमां तेनां दुःख भोगवां पडे छे. आत्मानुं ज्ञान जेम जेम निर्मल थतुं जाय छे तेम तेम सांसारिक कार्यमा मग्नता घटती जाय छे. कर्मना योगे जे सु. ख दुःख प्राप्त थाय छे, तेने कर्मनां फल जाणीने राग द्वेष करता नथी. पुद्गलने संयोगे कर्म बांध्यां छे ते भोगवाय छे; एम विचारे छे. आ 'प्रमाणे चित्तनी सुंदरता थाय छे, परंतु विशेष विशुद्धि नथी थइ तेथी
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