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( १८० ) उत्तरः-श्राद्धविधिमां एकला दिवसना चार प्रहरनो काल कह्यो तथा अहो रात्रीना पौषधनो आठ प्रहरनो काल कह्यो छे. पौषध लेवानो वि. धि पाने २४५ मे बताव्यो छे. ते प्रथम पौषध लेइ, पछी राइ पडिकमj पडिलेहण करे ए रीते छे. ने ए रीते करे तो जे पौषधनो चार प्रहरनो काल पूरो थाय. ने मोडो ले ने मोडो पारे ते वात पाठमां नथी. वास्ते सूर्य उदय अगाउ पौषध लेवो तेज योग्य छ, ने पंचाशकमां पौषध पाली पूजा करी पछी पौषध लेवानी मर्याद बतावी छे, पण ते पडिमा. धर श्रावकना संबंधमां छे, कारण जे पडिमाधरने पाछली पडिमा सहित छे, वास्ते ते पडिमा साचववी तेथी तेम विधि दर्शाव्यो छे. पडिमाधर शि. वायना श्रावकने सारु तो श्राद्धविधिमां कयुं छे ए ज रीते छे.
प्रश्नः-११० पौषधमां चोमासामा श्रावक भूमि उपर संथारो करे के पाट उपर ? - उत्तरः-चौमासामां तो पाट उपरज संथारो करवो कह्यो छे, विचार रत्नाकर ग्रंथ कीर्तिविजयजी महाराजनो करेलो छे, तेमां आवश्यकनी चर्णिनो पाठ लख्यो छे. तेमां काष्ट आसनना आदेश लेवाना कह्या छे. तेम श्राद्धविधिमां पण कां छे. वली श्रावकने सारु पाट पाटला करावी ने उपाशरे श्रावके मूकवा एम पण अधिकार श्राद्धविधिमां छे. वली हुंडी पत्र करीने प्रश्नरूप ग्रंथ छे तेमां चोमासामां पाट पाटला न वापरे तेने पासत्थो कह्यो छे.
प्रश्नः-१११ साधुजी पुस्तक राखे के नहि ? उत्तरः-आ कालमां साधुजी पुस्तक राखे ए अधिकार तत्त्वार्थमा पाने २८५ मे छे. तेमां जणाव्युं छे जे दुषम काले धारणानी खामी तेथी आज्ञा करी छे; वास्ते पुस्तक राखवाने हरकत नथी, पण पोताना शिष्य सारा न होय ते छतां ते पुस्तक शिष्यने आपी जq, ने ते वेची खाय ए योग्य नथी. ए पुस्तक संघना रुपियाथी लीधुं छे तेथी पुस्तक उपर मालकी संघनी राखवी के जेथी बगाड थाय नहि. शिष्यने भणवा जोइए
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