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(१५६ ) कर्यु ते सम्यक्दृष्टी पण नथी ने त्यां सोनइआनी वृष्टि थइ छे. ए लेनार असंजमी ज छे अने एम मुनीयोनो पण महिमा करवा सम्यकद्रष्टी देवता एवी भक्ति करे छे तो जे जे कृत्य सम्यक्दृष्टिए करेलां प्रभुए नि. षेध्यां नथी तो ते आचरवा जोग्य गृहस्थने छे. वली रायपसेणी सूत्रमां प्रदेशि राजानो अधिकार छ तिहां पण प्रदेशिराजाने केशि गणधर भ. हाराजे धर्म पाम्या पछी कह्यु जे-हे प्रदेशि ! तुं रमणिक थइने पछी अ रमणिक न थतो. ते वखते प्रदेशि राजाए कह्यं छे जे हुं म्हारी ऋद्धिना चार भाग करीश तेमांथी एक भाग दानशालामां आपीश. आ अधिकार रायपसेणी सूत्रमा पाने २४० मे छापेली प्रतमां मूलपाठमां छे. आथी वि. चारो जे दाननो निषेध छे, ते मात्र कुपात्र ने सुपात्र बुद्धिए आपq ते छे पण अनुकंपाए दुःखी जाणीने आपq तथा शासन प्रभावनाए आपq तेमां कोइ ठेकाणे निषेध नथी. आगमनी प्ररुपणा गुरुमुखे धारीने करे तोज बराबर समजाय. वली आत्मानो दानगुण तो स्वभाविक छे. पण ज्यां सुधी दान अंतराय होय त्यां सुधी वस्तु बराबर समजाय नही.दान देवू नहीं एवुज मनमां आवे. वली ज्यां ज्यां तीर्थकर महाराज वा, आचारज महाराज समोसरया छे ते वधामणी लावनारने प्रीतिदान बहु प्र. कारे आप्यां छे. तेमांथी एक अधिकार लखुं छु. चित्रसारथीए केशि महाराज समोसस्या त्यारे खबर लावनार वनपालकने दान आप्युं छे. ते अधिकार रायपसेणीजीनी छापेली प्रतमा पाने २३२ मे छे त्यांथी जोइ लेवं.
ए दानमा लाभ न होत तो सभ्यदृष्टी केम दे ? ते पण इहां प्रभुनी भक्तिभावनो उत्साह छे ते मोटो लाभ छे तेथी दान दीघां छे. ए दा. नमां धर्म नथी एम कहे तेणे विचारवू जोइए जे भगवंतने वांदवा जवाना रथy नाम, धर्मरथ मूलपाठमां बहु ठेकाणे कर्तुं छे. तेमांथी ज्ञाता सू त्र छापेलामां पाने १४९ मे छे. माटे हरेक वस्तु बधा शास्त्रनो विचार करीने ग्रहण करवी. दान विषे एवं कहे छे के असंजमीने दान दइए तेथी ते पुष्ट थाय ने आरंभ करे तेनी हिंसा लागे वास्ते देवू नहीं. तेने
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