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( १५५ ) छे. आज पण तेना अभ्यासी छे.
प्रश्नः-८८ कंइक जैनधर्म नामधारी तेरापंथी स्वेतांबरी कहे छे जे भगवतीजीमां पाने १६३ मे असंजमाने दान आपवाथी केवल पाप का छे. माटे दान देवू नहीं ते व्याजबी छे के केम ? . उत्तर:-जैनमार्गनी शैली स्याहाद छे. ते शैलीना ज्ञान विना जीव एकांत मार्ग ग्रहण करे तेना हाथमां सूत्रनो परमार्थ आवतो नथी. जेटलां सूत्रनां वचन छे ते अपेक्षित छे ते अपेक्षा गुरु पासे ज्ञान लेवाथी थाय छे ते गुरु विना पोताना स्वच्छंदपणे अर्थ करे तेना हाथमां परमार्थ केम आवे ? सूत्रना अर्थ नियुगतीकारे भाष्यकारे टीकाकारे कह्या छे ते उपरथी तथा ते अर्थ गुरु महाराज पासे धारे त्यारे प्रभुना अभिप्रायनुं ज्ञान थाय, पण पुर्वधर पुरुष अर्थ करी गया छे तेथी विपरीत बीजो अ र्थ करी अल्पबुद्धिवाला पंथ चलावे ने ते पंथने प्रमाण करे त्यारे तेनी अज्ञानता आगल उपाय नथी, प्रभुजीए वरसीदान दीधां छे ते दानना लेनार असंजमीछे तो जो दानमार्गनो निषेध होय तो प्रभु केम दान दे? प्रभु सम्यकदृष्टी छे त्रण ज्ञानना जाण तेमणे गुण जाणीने कर्य, ते सर्व गृहस्थने करवु जोग्य के ज्ञातासूत्र छापेलुं छे पाने ८५४ मे मल्लिनाथ महाराजे दान दीधुं ते अधिकार छे तेम कुंभराजा एमना पिताए पण चारे प्रकारना आहारनुं दान दीधुं छे ते पण पाने ८५५ मे छे. जो केवल हा. नीज होत तो मल्लिनाथ महाराज निषेध करत तेम निषेध कर्यु नथी. वली कृश्न वासदेवे थावच्चाकुमार दीक्षा लेवा तैयार थया त्यारे पोते श्रा खी द्वारिका नगरीमा उद्घोषणा करावी के जे कोइ दीक्षा लेशे तेना पा. छलना कुटुंबनी प्रतिपालना हुं करीश. आवा आशयनो अधिकार ज्ञाता सूत्रमा पाने ५४६ मे छे. तेथी विचार करो जे पाछलना कंइ संजमी नथी तो असंजमीज छे तेनुं रक्षण करवामां लाभ जाणी आ काम करयुं तो तेम बीजाने पण हितकारी छे. वली तीर्थकर महारज ज्यां पारणुं करे छे त्यां सोनइयानी वृष्टी थाय छे जेमके पुरण शेठने खां वीरस्वामीए पारj
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