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(१४.) हि पामें तेम ज्ञान विशुद्ध थाय. नवतत्व- स्वरूप विचारे तेमां छांडवा आदरवा योग्य पदार्थ- स्वरूप विचारे, आठकर्मनो विचार करे. तेना स. चा बंध उदय उदिरणानुं स्वरूप विचारे. नव अनुजोगथी आत्मानुं स्वरूप विचारे. संतपय ते आत्म पद छे ते छतुं छे. ए कृत्रिम वस्तु नथी. द्रव्य प्रमाणमां विचारे जे जीव अनंता छे ते सत्ताए तुल्य छे. पोत पो. ताना स्वभावे न्यारा छे. क्षेत्र विचारमा ज्यां सुधी शरीरमा रह्यो छे, त्यां सुधी शरीर प्रमाणे छे. ज्यारे शरीरथी न्यारो थाय छे, त्यारे जे अवगाहन होय ते प्रमाणे तेनो त्रीजो भाग संकोची सिद्धमा रहे छे. ते प्रमाणे श्रा. काश प्रदेशनी स्पर्शना कंइक अधिक छे. कालथी अनादि कालनो छे ने जे जे सिद्ध पामे छे त्यारे संसारनो अंत थाय छे ने सदा सिद्धमां रहे छे. अभवि जीव अनादि अनंत संसारमा ज रहे छे. अंतरंग विचारतां जीवनो अजीव थवानो नथी, ने पुदल मंगमा रह्यो छे त्यां सुधी पुद्गलनां रूप अनेक बने छे, पण वस्तुपणे रूप पलटातुं नथी. भाग विचा. रतां सर्वे जीव अनंता छे, तेने अनंतमे भागे हुं छु. भाव विचारतां पांच भाव छे, तेमां उदयिकभाव तेना एकवीश भेद छे ते कर्म संयोगे छे तेनां नाम. अज्ञानपणुं जेथी पोताना आत्म स्वरूपथी भूली पर जे पुद्गलिक पदार्थ उपर म्हारापणानो ममत्वभाव बनी गयो छे, ए पहेलो भेद. बीजो भेद असिद्धता ते आत्मा सत्ताए सिद्ध स्वभाव छे. ते अवराइ जवाथी अ. सिद्धता थइ छे. त्रीजों भेद जे असयमपणुं आत्मस्वभावमा समभावमय रहेवं ते छोडी विषयादिकमां राग द्वेषनी परिणती बनी तेथी धन शरीरमां कुटुंबादिकमां मूर्छितपणुं बन्युं छे, ते छये लेश्याना छ भेद तेमां प. हेली कृष्णलेश्या ते कर्म संयोगे माठा प्रणाममुं थq. जेम के छए ले. श्यावाला जांबु खावा गया छे. तेमां कृष्णलेश्यावालाए का जे आ झा ड कापी नांखो, जे पछी जांबु खाइए, एवा दुष्ट प्रणाम ते कृष्णलेशा. नीललेशावाला कहे जे ए वृक्षनी डालो कापो. एवा प्रणाम ते नीललेशा. कापोतलेशावालो कहे जे जे डाले जांबु छे ते कापो ए कापोतलेशा ने ते
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