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( १३८ ) शेडवा भावे जे, धन कुटुंबादित जे पदार्थ छे ते म्हारा नथी. श्रा शरीर छे ते म्हारुं नथी कारण जे म्हारी वस्तु छे ते विनाश पामती नथी. म्हाराथी जूदी थाय नहि. ने श्रा शरीर तो विनाश पामे छे. म्हारो ने एनो स्वभाव जूदो छे. ए शरीर ते पुद्गल पदार्थ छे. पुद्गलना द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव न्यारा छे. पुद्गल द्रव्य ते परमाणुं छे, ने तेवा अनंता परमा मलीने जे पदार्थ थयो छे. तेने स्कंध कहेवाय छे. तेनुं आ शरीर बन्युं छे. एवा ज स्कंध छे, ते विखरीने पाछा परमाणुं थइ जाय छे. वली मां जडता स्वभाव छे तेथी म्हारा द्रव्य ने शरीरना द्रव्य न्यारा छे. •वली क्षेत्र जेटलं म्होटुं शरीर छे वा स्कंध छे, तेटलुं क्षेत्र अवकाशी रहे छे. परमाणुं छे ते एक श्राकाश प्रदेश अवगाहीने रहे छे माटे आत्मानुं ने पुद्गलनुं क्षेत्र न्यारुं छे. कालथी परमाणुं श्रनादि अनंत छे शरीरादि स्कंध सादिसांत छे. एटले आदि पण छे ने अंत पण ले. भावथी अचेतन एटले जडभाव वर्ण गंध रस स्पर्शमय छे तो भावथी पण आत्माना गुणथी शरीर जे पुद्गल द्रव्य तेनो भाव न्यारो छे. एवी रीते पुद्गल द्रव्यनुं स्वरूप जाणे छे, पोते जडभावथी न्यारो थाय छे. एम ज चारे निक्षेपाए विचारे नामथी जीव वा आत्मा एवं नाम छे. जीव ने स्थापना निक्षेपो ते जीव एवा अक्षर लखवा वा, मूर्ति बनाववी ते द्रव्य नि क्षेपो ते असंख्यात प्रदेशमय-- ए त्रण निक्षेपा तो व्यवहार छे. भाव निक्षेपे श्रात्मानुं श्ररूपि स्वरूप, अव्याबाध स्वरूप, अक्षय स्वरूप, सर्व वस्तु जा
वा देखवानो स्वभाव एवो आत्मानो स्वभाव जाणे छे. जे जे पुद्गलदशानी प्रवृत्ति मननुं चितवन बनी रह्युं छे, ते म्हारा स्वभावनुं नथी. एवं निर्धार थवाथी जे जे जड प्रवृत्ति तेना उपर उदासीन वृत्ति थाय. sri शंका थशे के उदासीनवृत्तिने वैराग्य ते जूदो छे ? ते विषे समजवुं के शास्त्रमां वैराग्य कोने कहे छे ? जे परवस्तु उपर भाव जाय हें तेने पाछा वाली पोतानुं मन खशेडे छे तेने उदासिन वृत्ति थाय तो कंइ चितवन करवुं पडतुं नथी. केमके जे जे वस्तुथी उदासवृत्ति थइ
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