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( १३६ ) सावद्य जे पाप तेनो त्याग थाय छे, तेथी चारित्रनी विशुद्धि थाय छे. पडिक्कमणामां पापनी निंदा गहीं करवाथी अतिचारनी विशुध्धि थाय छे. तेथी चारित्रनी विशुध्धि थाय छे. काउसग्ग करवाथी कायानुं वोसिराव_ थाय छे. एक आत्माने विशे उपयोग स्थपाय छे, तेथी समभाव वृध्धि पामे छे. प्रभुना गुणमां एकाग्रता थाय छे, ते ज चारित्र छ, वास्ते चारित्राचारनी शुद्धि थाय छे. चउवीसथ्थो एटले लोगस्सथी दर्शनाचारनी विशुध्धि थाय छे. पच्चख्खाण आवश्यकथी तपाचारनी विशुध्धि थाय छे, ने वंदन आवश्यकथी ज्ञानाचारनी विशुध्धि थाय छे. कारण जे गुरुनो विनय करवो ए ज्ञाननो आचार छे ने छए आवश्यकमां वीर्य फोरवर्बु छे, वास्ते वीर्याचारनी शुध्धि थाय छे, सदाकाल संसारमा वीर्य फोरवी रह्यो छे, ते बलवीर्य छे. धर्ममां वीर्य श्रावकने फोरवq, ते श्रावकने बालपंडित वीर्य कर्तुं छे ने मुनि आराधकपणे वर्ते छे, ते पंडितवीर्य छे. ए रीते छए आवश्यके पांचे आचारनी विशुध्धि थाय छे.
प्रश्नः-७४ ज्ञान भणवाथी वा, सांभल्याथी वा, वांचवाथी शुं लाभ थाय ?
उत्तरः-ज्ञान बे प्रकारनुं छे, एक बाह्य ने एक आभ्यंतर. तेमां जे बाह्यज्ञान ते संसारना वेपार रोजगार धन पेदा करवू. कला कुशलपणुं, विषय सेववा ए बाबतनुं जे ज्ञान ते अात्माने हित करता नथी. संसार वधारवानुं कारण छे. अने स्वर्गनुं स्वरूप नरकनुं स्वरूप जाणवू. तेथी वस्तबोध थाय छे. तथा उत्तम पुरुषनां चरित्रो सांभलवां तथा श्रावकना मुनिना बाह्यना व्रत अधिकार जाणवा, ते पण बाह्यज्ञान छे, पण अंतरमां गुण थवानुं कारण छे. केमके उत्तम पुरुषोए जे जे मार्गे अंतरंगज्ञान मेलवी आत्मा निर्मल करयो तेम करवाने अवलंबन छे. वली अंतरंग विशुध्धिनां कारण छे. बाह्यथी त्याग थएली वस्तुनो अभ्यास पडवाथी तेना उपर इच्छा जती नथी. ए डाह्या माणसना अनुभव गम्य छे. एम थवाथी ते चीजो संबंधी विकल्प टली जाय छे. तो आत्मानी निर्विकल्प
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