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तन ! तुं अज्ञानपणे कुटुंबने सारु अनेक पापारंभ करे छे ते योग्य नथी. तुं त्हारा आत्मभावनो विचार कर. जेम बने तेम जडभावनो त्याग कर. म्होटा राजा सरखाने पण कोइ दुःखथी छोडावनार नथी. नरकने विषे विचित्र दुःख भोगवq पडशे. एम विचारीने सर्व पदार्थ अनित्य छे, पण कोइ शरणभूत नथी. एम धारी मोहमां मूझावं नहि..
त्रीजी संसार भावना ते-संसारमा सगां व्हालां जे मल्यां छे, ते स्वा. र्थि मल्यां छे. जेने तुं म्हारां कहे छे, ते तेनो स्वार्थ पूरो थशे त्यां सुधी रागं धरशे ने तेनो स्वार्थ नहि सरे त्यारे कोइ पण त्हारुं थवानुं नथी. तुं म्हारा म्हारां करी फोकट कर्मबंध करे छे, पण ते दुःख त्हारे ज भो. गववां पडशे, संसारी सुख छे ते भ्रमावेलां सुख छे. वस्तुपणे कंइ पण सुख नथी. सुख तो समभावमा ज छे, वास्ते हे आत्मा ! मोह करवो ते युक्त नथी. __ एकत्त्व भावना ते-आत्मा एकलो आव्यो छे. वली जशे त्यां पण ए. कलो ज. पण कुटुंबादिक कोइ साथे आववाना नथी. जड पदार्थ उपर मोह करे छे ते सर्वे दुःखना साधन छे. जे जे दुःख पडे छे ते ए.पर प. दार्थने विषे ते म्हारापणुं मान्युं तेनां फल छे. माटे हे चेतन ! एक आस्मस्वरूपना समभावमा रहेq ते ज म्हारं काम छे. एवी भावना भावी परवस्तु उपरथी म्हारापणानो राग टाले. ___ अन्यत्त्व भावना ते-छए द्रव्य ते. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, प्रा. काशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, काल, जीवास्तिकाय, ए छए द्रव्यमां जी. वद्रव्य जे म्हारो आत्मा तेनो स्वभाव चैतन लक्षण छे. ते लक्षण आ बीजा पांचे द्रव्यमां नथी. माटे म्हाराथी ए-न्यारा छे. ए आकाशास्तिकाय द्रव्य छे ते सर्व द्रव्यनुं भाजन छे. तेमां हुँ वसुं छु, पण एनो स्वभाव अवकाश प्रापवानो छे. ते आपे छे, पण हुं एनाथी न्यारो छु. वली धर्मास्तिकाय छे, तेनो जीव पुद्गल पदार्थ चाले तेने सहाय्य करवानो धर्म छे ते करे छे. जेम माछलांने तरवानी शक्ति छे.पण पाणी विना तरी शके
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