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चाहिये । और खड़े रहते हुवे चरण की उङ्गलियों के मध्य में चार अंगुल अन्तर रखना व एडी के बीच में इससे कुछ कम अन्तर रख कर खड़ा रहना चाहिये। इस तरह खड़ा रहने से जिनमुद्रा होती है और वन्दन ध्यान में यह उपयोगी है । अतः अनुकूलता व शक्ति देख कर आसन सिद्ध कर लेना चाहिये। __जाप करने के लिए बैठे तब झुक कर या शरीर को शिथिल बना कर नहीं बैठना चाहिये बिलकुल टटार इस तरह बैठना कि श्वास की नली सीधी रहे और श्वास रोकने व निकालने में बाधा न आवे इस तरह सुखासन पर जो बैठते हैं उनका ध्यान अच्छा जमता है।
ध्यान शक्ति के प्रभाव से तीन लोक को विजय कर सकते हैं। इसलिए ध्यान शक्ति पर श्रद्धा रखना चाहिये और ध्यान करते समय अनिवार्य संङ्कट सहन करना पड़े तो भी दृढ़ चित्त रहकर एकाग्रता सहित ध्यान करते रहना आत्म विश्वास रखना ज्ञानियों के वचन को सत्य मानना तो अवश्य उच्च पद प्राप्त होगा
कितनेक कहते हैं कि क्या करें मन वश में नहीं रहता अतः • जप जाप्य में स्थिरता नहीं पाती। यह कहना स्वच्छन्दता का है। मन तो वश में रहता है किन्तु जप-ध्यान में हम नहीं रख सकते । अगर मन वश में न रहता हो तो रुपया गिनते वक्त, नोट सम्भालते समय, सोने का गहना कराते वख्त और भोग संभोग में कितनी स्थिरता रहती है सो पाठकों से छिपी नहीं है। हम इसके लिये विशेष विवेचन करना नहीं चाहते लेकिन प्रसंगोपात इतना जरूर कहेंगे कि मन तो वश में रहता है । तथापि हम ध्यान आदि में नहीं रख सकते । अतः मन ही पर सारा भार न डाल कर प्रयत्नशील बने और ध्यान विचार में बताये हुवे आसन आदि
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