________________
( १८ )
॥ वस्तु विक्रय मन्त्र ।। नट्ठमयट्ठाणे परगट्ठ कमट्ट नट्ठ संसारे, परमट्ठनिट्ठिय? अट्ठगुणाधीसरंवंदे ॥४५।।
इस मन्त्र की साधना श्मसान-स्थान में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन करे । सन्ध्याकाल के बाद प्रहरोर्द्व रात्रि के समय प्रारम्भ करे। धूप दीप जयणा सहित रक्खे, कट पत्र तैल गुग्गुलादिका होम जयणा सहित करे प्रति दिन दो हजार जाप कर सिद्धि प्राप्त करे । बाद जिस वस्तु को बेचना हो तब इक्कीस जाप से मन्त्रित कर विक्रय करे मनेच्छा मूल्य प्राप्त होगा।
॥सर्वभय रक्षा मन्त्र ।। ॐ अर्हते उत्पत उत्पत स्वाहा । त्रिभुवन स्वामिनी, ॐ थम्भेइ जल जलणादि घोवसग्गं मम अमुकस्य वायरणा सेउ स्वाहा ॥४६॥
इस मन्त्र को चन्दनादि द्रव्य से लिखने के हेतु सामग्री एकत्रित कर पाट उपर रखना और धूप दीप जयणा सहित रख कर १०८ बार नवकार मन्त्र का ध्यान करने बाद मंत्र लिखना, बाद में पट्ट को पूजन अर्चन सुगन्धी पुष्पादि से करके मंत्र सिद्ध करना, और भय उपस्थित समय अमुक जाप किया जाय तो भय नष्ट हो जाता है।
॥ तस्कर स्थम्भन मन्त्र ॥ ॐ नमो अरिहन्तारणं धधणु महा धणु महाधणु स्वाहा ॥४७॥
इस मन्त्र का ध्यान स्व ललाट विषे ध्यान लगा कर करे तो चोर-तस्कर स्थम्भन हो जाते हैं और षटि क्रिया करके मन्त्र
Scanned by CamScanner