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गुजरातीमें 'साथियो' शब्द प्रचलित हुआ। सातवें सुपार्श्वनाथ भगवान का लांछन भी स्वस्तिक ही है। जो मंगल-कल्याण करें वह स्वस्तिक । जो पाप का विनाश करें वह स्वस्तिक । जो पुण्य का विस्तार करें वह स्वस्तिक । स्वस्तिक में मांगलिकता, सुख, आनंद, कल्याण, सुरक्षा और
व्यापकता का सुभग संगम है। 1.2 जनसामान्य में स्वस्तिक का चलन :
धार्मिक या सामाजिक, कोई भी मांगलिक अवसर पर घर, मंदिर इत्यादि के प्रवेशद्वार पर स्वस्तिक किया जाता है। गृहप्रवेश के मंगल अवसर पर साथिया के द्वारा घर में यश-कीर्ति-धनसमृद्धि की वृद्धि होगी ऐसा विश्वास व्यक्त किया जाता है। कई स्थान पर नित्य या पर्व के दिन आँगन स्वच्छ करने के बाद 3 या 5 साथिया के आलेखन द्वारा मंगल किया जाता है। दिपावली के चोपडापूजन में साथिया के द्वारा मंगल किया जाता है। नयी गाडी या नया वाहन खरीदारी के समय भी मंगल भावना व्यक्त करने के लिए साथिया किया जाता है। घरों में मंगल प्रसंग पर 'साथिया पूरावो आज...दीवडा प्रगटावो रे...' इत्यादि गीतों के द्वारा भी साथिया आलेखन कर के आनंद मंगल की अभिव्यक्ति व्यक्त की जाती है। हररोज सुबह जिनालयो में स्नात्र के त्रिगडा में भगवान पधरावनी पूर्व प्रथम साथिया का आलेखन किया जाता है। जीवन व्यवहार के अनेक विषयो में जाने-अनजाने में भी साथिया का अति प्रचलन रहा है। मकानों में झरोखा इत्यादि की रेलींग में, देहली पर के स्टीकरों में, हाथ के ब्रेसलेट में, गले के पेंडेंट में, सारी या चद्दर की डिज़ाइन में इत्यादि जैसे विविध अनेक स्थान पर साथिया का मुक्त उपयोग दिखाई देगा। स्वस्तिक के अनेक अर्थ: स्वस्तिक के अनेक अर्थ अनेक तरीके से किये गये है। उसकी चार पाँख को कोई भी चार पदार्थ के प्रतिनिधि रुप मान कर इस में से कोई भी शास्त्र या व्यवहार अबाधित अर्थ का विचार किया जा सकता है, जो किसी न किसी शुभ संदेश या प्रेरणा सूचित करता हो।
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