________________
(4)वर्धमानक : किसी भी चीज को नियंत्रित-अनुशासित
करता संपुटाकार वर्धमानक, सतत भ्रमणशील मनको परमात्मा के आलंबन से ध्यानादि साधना द्वारा स्थिर करने
का संदेश देता है। (5)भद्रासन : उत्तम पुरुष, उत्तम आसन पर बिराजमान होते हुए
भी, अपने पद का दुरुपयोग नहीं करते और मनमें अहंकारादि भाव भी नही लाते, वैसे ही हमको भी पुण्यसंयोग से पद-प्रतिष्ठा प्राप्त होने पर उसका दुरुपयोग नही करना
और अहंकार भी नही करना ऐसा संदेश भद्रासन देता है। (6)पूर्णकलशः महामंगलकारी और पूर्णता का सूचक ऐसा
मंगलकलश, मांगलिक कार्य अधूरे न छोडते हुए पूर्णरुप से करने का संदेश देता है। मंगलकारी धर्म की आराधना द्वारा
पूर्णानंद स्वरुप मोक्ष प्राप्ति का ये सूचक है। (7)मीनयुगलः मछली सच्चे प्रेम का प्रतीक है। जो सदा हृदय
को निष्छल एवं निष्कपट बनाने की प्रेरणा देती है । मछली सदा जल प्रवाह से विपरीत दिशा में गति करती है, जो भी हम को संसार प्रवाह से विरुद्ध गति करके अनादिकालीन
कर्मयुक्त आत्मा को शुद्ध एवं सिद्ध बनाने की प्रेरणा देती है। (8)दर्पण : हमारा हृदय दर्पण की तरह स्वच्छ एवं निर्मल बने,
उसमें परमात्मा का वास हो ऐसी प्रेरणा दर्पण देता है। और, दर्पण सदा प्रकाश का ही परिवर्तन करता है, अंधकार का नहि, उस तरह हमारा जीवन भी दूसरों के उपकारों एवं सद्गुणों का ही परावर्तन करनेवाला हो, अवगुण-दोषो का नहि, ऐसा संदेश दर्पण देता है।
1.स्वस्तिक (0)
हे प्रभु ! आपके जन्म से, तीनों लोक में स्वस्ति यानी कल्याण होता है, इसलिए तो आपके समक्ष स्वस्तिक का आलेखन
करते हैं। 1.1 अष्टमंगल का सबसे पहला मंगल है स्वस्तिक :
उसका आगमिक शब्द है सोत्थिय या सोवत्थिय। जिससे