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भाषार स्कर
२८३ क्रिया के व्यापार का करनेहारा जब प्रधान * अर्थात उक्त होता है तब प्रथम कारक रहता है। जैसे बालक खेलता है लड़कियां घोड़ती थी वृक्ष फलेगा इत्यादि ॥
२८४ क्रिया के व्यापार का फल जिस में रहता है वह जब उक्त हो जाता है तब उस में प्रथम कारक होता है। जैसे पोथी बनाई जाती हे वृत्तान्त लिखे जाते हैं ।
२८५ उद्देश्य विधेयभाव में अर्थात जब संज्ञा संज्ञा का बिशेषण हो जाती है विधेयवाचक संज्ञा का का कारक होता है। जैसे ज्ञान सब से उत्तम धन है सेना रुपा लोहा आदि धातु कहाते हैं उसका हृदय पत्थर हो गया है ॥
२८६ यदि एक ही कती की दो वा अधिक क्रिया हो तो कर्ता केवल प्रथम क्रिया के साथ उक्त होता है शेष क्रिया यों के साथ उसका अध्याहार किया जाता है। जैसा वह दिन दिन खाता पीता साता जागता है वे न बोते हैं न लवते हैं न खत्तों में बटोरते हैं ॥
द्वितीय अर्थात कर्म कारक । २८७ क्रिया के व्यापार का फल जिस में रहे और वह अनुक्त होवे तो उस में द्वितीय क रक हो जाता है। जैसे आम को खाता हे तारों को देखता है फलों को बटोरता है ॥
___ * ध्यान रखना चाहिये कि कत्ती दो प्रकार का है प्रधान और अप्रधान । प्रधान उस कती को कहते हैं जिसके लिङ्ग वचन और पुरुष के अनुसार क्रिया के लिङ्ग आदि होते हैं। जैसे गुरु चेलों को सिखाता है इस वाक्य में गुरु प्रधान कर्ता है इस कारण कि जो लिङ्ग आदि उस में हैं सा ही क्रिया में हैं । अप्रधान कती के साथ ने चिन्ह आता है और उसकी क्रिया के लिङ्ग और वचन कर्म के लिङ्ग और वचन के अनुसार होते हैं। जैसे पण्डित ने पोथी लिखी लड़के ने लड़को मारी उसने घोड़े भेजे । जब कर्म कारक अपने चिन्ह को के साथ आता है तब क्रिया सामान्य पुल्लिङ्ग अन्य पुरुष एक वचन में होती है कर्म पुल्लिङ्ग हो वा स्त्रीलिङ्ग हो । असे पण्डित ने पोथी को लिखा है लड़की ने रोटी को खाया है।
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