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भाणभास्कर
चैथा अध्य य॥
सर्वनामों के विषय में। १५३ सर्वनाम संज्ञा के लिङ्ग का नियम यह है कि जिनके बदले में सर्वनाम आवे उन शब्दों के लिङ्ग के समान उसका भी लिङ्ग होगा। जेसे पण्डित ने कहा में पढ़ाता हं यहां पण्डित पुल्लिङ्ग हे तो मैं भी पुल्लिङ्ग हुआ कन्या कहती है कि मैं जाती हूं यहां कन्या शब्द के स्त्रीलिज होने के कारण सर्वनाम भी स्त्रीलिङ्ग है ऐसा ही सर्वच जाना । __१५४ सर्वनाम संज्ञा के कई भेद हैं जैसे पुरुषवाची अनिश्चयवाचक निश्चयवाचक आदरसूचक सम्बन्धबावक और प्रश्नवाचक ।।
१ पुरुषवाची सर्वनाम ॥ १५५ पुरुषवाची पर्वनाम तीन प्रकार के हैं १ उत्तमपुरुष २ मध्यमपुरुष ३ अन्यपुरुष । उत्तमपुरुष सर्वनाम में मध्यमपुरुष तू और अन्यपुरुष वह है । मैं बोलनेवाले के बदले तू सुननेवाले के पलटे और जिसकी कथा कही जाती है उसके पर्याय पर अन्य पुरुष आता है। जैसे में तुम से उसकी कथा कहता हूं ॥
१५६ उत्तम पुरुष में शब्द । कारक।
एकवचन । बहुवचन । कती
मैं वा मैं ने हम वा हम ने वा हमों ने कर्म
मुझ को मुझे हम को हमों का वा हमें मुझ से
हम से वा हमों से सम्प्रदान मुझ को मुझे हम को हमों का वा हमें अपादान मुझ से
हम से वा हमों से सम्बन्ध मेरा-रे-री हमारा-रे-री अधिकरण मुझ में
हम में वा हमों में ॥ ___१५० सम्बन्ध कारक की विभक्ति (रा रे री ) केवल उतम और मध्यमपुरुष में होती है और ना ( ने नी) यह निजवाचक वा आदरसूचक आप शब्द के सम्बन्ध कारक में होता है। इन रूप का अर्थ और उनकी योजना का ( के की ) के समान हैं।
करण
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