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भाषाभास्कर
४ यण ।
६२ हस्व वा दीर्घ इकार उकार ऋकार से पर कोई भिन्न स्वर रहे तो कम से इस्व वा दीर्घ इ उ ऋ को य व र हो जाते हैं। इसी विकार को यण कहते हैं। यथा
उदाहरण
| यदि पूर्व पद के
अंत में पहिली पांती का स्वर होवे और पर पद के आदि में दूसरी पांतीका स्वर होवे | तो दोनों मिलकर तीसरी पांती के वर्ण हो जायेंगे
प्रसिद्ध संधि
| सिद्ध संधि
MA9aaaaaaaDANAWARA
यदि + अषि = यद्यपि इति + आदि - इत्यादि प्रति + उपकार - प्रत्युपकार नि + अन = न्यून प्रति + एक = प्रत्येक अति + ऐश्वर्य = अत्यैश्वर्य युवति + ऋतु = युषत्यतु गोपी + अर्थ = गोप्यर्थ देवी + आगम = देव्यागम सखी + उक्त = सख्युक्त अनु + य = अन्वय सु + आगत = स्वागत
+ इत = अन्वित अनु + एषण = अन्वेषण वहु + ऐश्वर्य = वहश्वर्य सरयू + अम्बु = सरय्वम्ब पितृ + अनुमति = पिचनुमति मातृ + आनन्द = मात्रानन्द
श्रा
रा
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