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________________ [१] प्रज्ञा दादाश्री : प्रज्ञा का बेसमेन्ट तो अलग ही है। इतना तो अज्ञानी भी समझता है कि यह राग-द्वेष कर रहा है। 'राग-द्वेष चले गए हैं, उसे प्रज्ञा जानती है। वह अज्ञानी को समझ में नहीं आता। बाकी, छोटा बच्चा भी राग-द्वेष को समझता है न! हम मुँह चढ़ाएँ तो बच्चा चला जाता है, वापस नहीं आता। अज्ञा के जाने पर प्रज्ञा उत्पन्न होती है। जगत् के जीवमात्र में जब तक मिथ्यात्व है, तब तक अज्ञा है और मिथ्यात्व चला जाए, तब प्रज्ञा उत्पन्न होती है। प्रश्नकर्ता : क्या संसार में रहकर प्रज्ञा प्रकट नहीं हो सकती? अज्ञा ही रहती है? दादाश्री : नहीं। महात्माओं में प्रज्ञा उत्पन्न हो गई है। अब आप संसार में हो तो भी प्रज्ञा उत्पन्न हो गई है न! अतः अब संसार में जहाँजहाँ आपको बंधन है, हमेशा आपको वहाँ से छुड़वा देगी, सचेत करके। हमें अगर कोई जागृति न रहे तो अंदर से चेतावनी मिलती है, वह प्रज्ञाशक्ति का काम है और जब संसार व्यापार करता है तब अज्ञाशक्ति कहती है, 'ऐसा करो तो शादी हो पाएगी, यों मिल जाएगा'। अज्ञाशक्ति वह चेतावनी देती है लेकिन उससे तो संसार में भटकना होगा जबकि प्रज्ञा मोक्ष के लिए सचेत करती है। प्रश्नकर्ता : सभी डिसिज़न बुद्धि लेती है न? दादाश्री : हाँ, डिसिज़न बुद्धि लेती है लेकिन दो प्रकार के डिसिज़न। मोक्षमार्ग के डिसिज़न प्रज्ञा लेती है और सांसारिक डिसिज़न अज्ञा लेती है। अज्ञा अर्थात् बुद्धि। अज्ञा-प्रज्ञा के डिसिज़न हैं ये सारे। अज्ञा का प्राकट्य? प्रश्नकर्ता : ज्ञान और प्रज्ञा में फर्क क्या है ? दादाश्री : प्रज्ञा तो ज्ञान से उत्पन्न होने वाली एक शक्ति है। प्रज्ञा आत्मा की ही डायरेक्ट शक्ति है, डायरेक्ट लाइट है और
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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