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________________ ऐसा कहता रहता है तो वह भ्रमित नहीं तो और क्या है? वही 'मैं' है, वही बावा और वही मंगलदास है। पर्सनल, इमपर्सनल और एब्सल्यूट का मतलब क्या है? मंगलदास पर्सनल, बावा इम्पर्सनल और मैं एब्सल्यूट। शुद्धात्मा और चंदूभाई के बीच में है इम्पयोर सोल (बावा)। यह इम्प्योर सोल मात्र बिलीफ ही है। वह खत्म हो जाए तो फिज़िकल (मंगलदास) की कोई ज़िम्मेदारी नहीं रहती। इम्प्योर सोल ने चंदूभाई नाम को पकड़ लिया है कि 'मैं ही चंदूभाई हूँ' उससे रोंग बिलीफ बैठ गई। 'मैं चंदूभाई हूँ', वह फर्स्ट रोंग बिलीफ है। खुद कहता है कि 'मैं चंदूभाई हूँ' वही अहंकार है। ज्ञान मिलने पर अंहकार फ्रेक्चर हो जाता है और राइट बिलीफ बैठ जाती है कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ। अब 'आप' शुद्धात्मा हो और 'आपको' अब (बावा का) मिश्रचेतन का निकाल करना है और निश्चेतन चेतन (मंगलदास) अपने आप ही सहज भाव से चलता रहेगा। दादाश्री कहते हैं, 'हम व्यवहार में लघुतम और निश्चय में गुरुतम हैं!' "हम और भगवान एकाकार हैं और जुदा भी हैं।' केवलज्ञान होने पर एकाकार हो जाता है। जब हम दर्शन करवाते हैं, 'दादा भगवान ना असीम जय जयकार हो', उस घड़ी भगवान की तरह रहते हैं। उससे सभी उल्लास में आ जाते हैं न! और जब बातें करते हैं, सत्संग करते हैं, तब भगवान से जुदा! अभी जुदा हैं। हालांकि यह जो बोल रहा है, वह टेपरिकॉर्डर बोल रहा है न! मैं उसका ज्ञाता-दृष्टा हूँ।" प्रश्नकर्ता दादाश्री से पूछते हैं कि "हम' भगवान के साथ एकाकार हैं? तो तब, 'हम उनसे जुदा हैं तो इसमें 'हम' कौन है ?' तब दादाश्री कहते हैं, '356 डिग्री वाला जो भाग है वह ज्ञानीपुरुष है, अंबालाल भाई जो ज्ञानी हो चुके हैं। वही मैं, वही बावा और वही मंगलदास है'। जो मठिया खाता है, वह मंगलदास है। जो स्वाद वेदता है वह बावा है और जो जानता है वह आत्मा है। मज़ा करने वाला बावा और उसे जानते हो 'आप'। 68
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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