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[७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास'
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प्रश्नकर्ता : अर्थात् ऐसा है कि आपका जो बीच वाला यह बावा का पद है, उतना उसकी (बावा की) समझ में है। केवलदर्शन है अर्थात् बावा को पूरा, एकदम प्योर दर्शन मिल गया है इसलिए मंगलदास पर होने वाला कोई भी असर आपको स्पर्श ही नहीं करता।
दादाश्री : हाँ, तूने देखा है बावा को?
प्रश्नकर्ता : मंगलदास का फोटो तो एक्जेक्ट लिया ही जा सकता है। बावा भी दिखाई दे, ऐसा है न?
दादाश्री : वह यों स्थूल रूप से नहीं दिखाई देता।
प्रश्नकर्ता : यानी वह समझा जा सकता है ? बावा का पद ऐसा है कि समझ में आ जाता है ?
दादाश्री : वह केवलज्ञान में दिखाई देता है और तीन सौ छप्पन तक समझ में आता है, तीन सौ उनसठ तक, तीन सौ छप्पन तक कुछ समझता है, तीन सौ सत्तावन हो जाएँ तो कुछ और ज़्यादा समझता है, तीन सौ अठावन पर बढ़ जाता है, और तीन सौ उनसठ पर और ज्यादा बढ़ता है और साठ में पूर्ण हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : बाकी बारस, तेरस, चौदस और पूनम के दिन पूनम हो जाती है। पूनम तीन सौ साठ, चौदस से आगे की।
प्रश्नकर्ता : कैमरे से मंगलदास की फोटो ली जा सकती है। वह ऐसा है कि दिखाई देता है, तो क्या बावा भी दिखाई दे सकता है? ।
दादाश्री : मंगलदास, वह फिज़िकल है। बावा फिज़िकल नहीं है। फिर भी फिज़िकल है लेकिन दिखाई नहीं दे, ऐसा फिज़िकल है।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् ज्ञान से समझ में आ सकता है कि यह बावा का ही पद है।