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________________ ४४२ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) दादाश्री : मंगलदास खुद अपना इफेक्ट भुगतता है और अगर खुद का इफेक्ट न हो और बावा का हो तो बावा भुगतता है। प्रश्नकर्ता : अथवा बावा का इफेक्ट मंगलदास पर आता है ? दादाश्री : इफेक्ट तो आमने-सामने आता जाता है, लेकिन उसका खुद का अर्थात् खुद का ही। यदि तेरी इच्छा हो, तब भी मंगलदास नहीं बदलेगा। बावा की इच्छा हो कि मंगलदास में ऐसा परिवर्तन हो जाए तो परिवर्तन नहीं होगा और मंगलदास की इच्छा हो तब भी इस बावा में कोई परिवर्तन नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : दादा, कई बार ऐसा होता है कि हम एक समझ के अनुसार चल रहे होते हैं, अब वह समझ तो बावा की होती है कि 'भाई, इस पंखे की हवा नहीं खानी चाहिए, लेकिन फिर किसी संयोग की वजह से वापस उसकी बिलीफ बदल जाती है कि 'नहीं, पंखे की हवा खाना तो बहुत अच्छा है। अर्थात् इस प्रकार बाद में उसकी बिलीफ बदल जाती है। तब वापस प्रकृति को यह पंखा अच्छा लगने लगता है। दादाश्री : तो फिर? प्रश्नकर्ता : तो यह जो प्रकृति बनती है और प्रकृति इफेक्ट में आती है, उसके पीछे मूलभूत कारण तो बावा को जो ज्ञान प्राप्त हुआ है, वही है न? दादाश्री : बावा से ही प्रकृति बनती है। बावा ही प्रकृति बनाता है। प्रकृति, प्रकृति को नहीं बनाती। पहले बावा ने बनाई थी। तो उससे यह कुछ भाग प्रकृति बन गया और बाकी का बावा के पास रहा। ज्ञान से, जो ज्ञान के संयोग मिलते हैं, उससे जितना चेन्जेबल होता है, वह बावा के पास रहता है और जितना चेन्जेबल नहीं होता वह प्रकृति में रहा। प्रश्नकर्ता : एक्ज़ेक्ट ऐसा ही है ! अब बावा के पास वाला ज्ञान चेन्जेबल है?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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