________________
४४०
आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
दादाश्री : इफेक्ट के आधार पर।
प्रश्नकर्ता : मंगलदास के इफेक्ट के आधार पर? बावा को कौन बदलता है? अर्थात् यह ज्ञान या बाहर का असर? बावा किस आधार पर बदलता है?
दादाश्री : इफेक्ट के आधार पर। (ज्ञान से जितना इफेक्ट भोग लिया उतना ही बावा आगे बढ़ता है, ऐसा समझना है)
प्रश्नकर्ता : इफेक्ट मंगलदास का? दादाश्री : भला मंगलदास का इफेक्ट होता होगा? प्रश्नकर्ता : तो?
दादाश्री : जो उसे भुगतता है, उसका। मंगलदास अपना खुद का इफेक्ट भोगता है। बावा अपना भोगता है।
प्रश्नकर्ता : तीन सौ पैंतालीस पर से तीन सौ छयालीस पर आता है, तीन सौ सैंतालीस पर आता है तो वह किस आधार पर आता है ?
दादाश्री : जितना वह (ज्ञान में रहकर) भोग लेगा, उतना ही इसमें आ जाएगा अर्थात् जितना 'मैं' में आएगा उतना बढ़ेगा।
प्रश्नकर्ता : बावा 'मैं' में चला जाता है?
दादाश्री : नहीं तो फिर कौन जाता है? वह तीन सौ छप्पन वाला बावा बढ़ते-बढ़ते तीन सौ साठ का हो जाएगा। उनसठ तक बावा है और साठ पर पहुँचा, तो वह खुद है !
प्रश्नकर्ता : और 'मैं' तो तब था ही, रहता ही है ? 'मैं' हमेशा था और रहता ही है?
दादाश्री : 'मैं' तो रहेगा ही न!
प्रश्नकर्ता : तो क्या ऐसा होता है कि यह 'मैं' बावा को कुछ समझाता है?