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________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान 'मैं, बावा और मंगलदास' दादाश्री : रिलेटिव में चंदूभाई को क्या दिया था ? प्रश्नकर्ता : 202 डिग्री । ४३३ दादाश्री : वह चंदूभाई तो 202 डिग्री पर ही है । उसके बाद डिग्री बढ़ती गई तब वह बावा माना जाने लगा । 303 डिग्री तक पहुँचा तो इसका मतलब बावा । वह बावा बनते, बनते बनते बनते जब 359 डिग्री तक पहुँचेगा, तब तक बावा है और 360 डिग्री मतलब कम्प्लीट । " प्रश्नकर्ता : यानी जैसे-जैसे उसके दर्शन में परिवर्तन होता गया वैसे-वैसे डिग्री बढ़ती गई। एक के बाद एक उसकी डिग्री बढ़ती गई... दादाश्री : वही का वही बावा है । 303 पर भी बावा कहलाता था और 359 पर भी बावा कहलाता है । प्रश्नकर्ता : हाँ, अर्थात् 303 डिग्री पर आ जाने के बाद बावा का दर्शन बढ़ता जाता है। दादाश्री : हाँ, तो अंदर बावा, वह आपको अलग कर दिया और अंदर वह वही है जो खुद चंदूभाई माना जाता था, अब वही का वही खुद वापस लौट रहा है। पहले खुद बावा बनता गया और फिर बावा बनकर आगे बढ़ने लगा। उसे मैंने 'यह बावा', ऐसा नाम दिया है उससे यदि समझ आ जाए तो बहुत उत्तम है। कब तक बावा है और कब तक मंगलदास वगैरह सब। प्रश्नकर्ता: और जब से जन्म हुआ तब से मंगलदास है। दो सौ दो डिग्री पर जन्म हुआ तो मंगलदास 202 डिग्री पर । दादाश्री : मंगलदास कौन है ? जितना फिज़िकल भाग है, सिर्फ उतना ही, जन्म हुआ तब से नहीं । जो कुछ फिज़िकल है, वह सारा ही! प्रश्नकर्ता : अर्थात् मंगलदास पहले छोटा था, फिर जवान हुआ उसके बाद बूढ़ा हुआ, वह फिज़िकल भाग ही । शरीर !
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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