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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
जितना खुद का महत्व होता है, उतना ही इसका महत्व है। बीच वाले की, इम्पर्सनल की... और हमेशा पर्सनल का महत्व कम होता है। पर्सनल का अर्थ यही है कि खुद का महत्व कम कर देना! खुद की कीमत बढ़ाने की कोशिश करने से बल्कि कम हो जाती है।
प्रश्नकर्ता : जीवात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा, गुजराती में बारबार इसका स्पष्टीकरण हुआ है। इंग्लिश में दो ही शब्द कहे हैं, आइ विद माइ और आइ विदाउट माइ। तो यह तीसरा शब्द आज निकला। इंग्लिश में दो ही थे।
दादाश्री : हाँ। लेकिन तूने पूछा तो यह निकला। कोई पूछे तो निकलता है।
प्रश्नकर्ता : अब विदाउट यानी कि 'मेरा नहीं' ऐसा किस आधार पर साबित होता है ! ऐसा कब होता है कि 'मेरा नहीं', ऐसा डिसिजन आ जाता है, वह साबित हो जाता है?
दादाश्री : साबित होने का इससे कोई लेना-देना नहीं है। यह तो इन तीनों की अवस्थाएँ हैं। फिर इसका प्रमाण कहाँ से लाएँ? चाहे कहीं से भी लाएँ, हमें इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। लेकिन 'आइ विद नॉट माइन' वह अंतरात्मा दशा है।
प्रश्नकर्ता : आइ का रियलाइज़ेशन हो जाए न, सेल्फ रियलाइज़ हो जाए तब शुरुआत होती है न ‘नोट माइन' वाली दशा की?
दादाश्री : ऐसा तो सिर्फ कहते हैं लेकिन जब तक ऐसा रियलाइज़ नहीं हो जाता, तब तक काम नहीं आएगा न ! रियलाइज़ करने के लिए फिर से कोशिश करता है। तब फिर दूसरी सब चीजों में से उसकी रुचि खत्म हो जाएगी। रुचि खत्म होने के बाद वह इंसान जिस हेतु के लिए प्रयत्न कर रहा है, उसे वह हेतु प्राप्त हो ही जाएगा अगर उसमें कोई मिलावट नहीं हो तो। मिलावट होगी तो नहीं होगा। अगर हेतु में मिलावट नहीं होगी तो प्राप्ति होगी ही। तब तक 'आइ विद माइ' है। सेल्फ की प्राप्ति के बाद में 'आइ विद नॉट माइन'।