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________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान- 'मैं, बावा और मंगलदास ' प्रश्नकर्ता : सबकुछ जानता है। दादाश्री : 'बावा' कैसा है कैसा नहीं ? फिर अगर 'मैं' 'बावा' बन जाए तो हो चुका ! अभी तक आप ऐसे ही थे । ३९५ अब मंगलदास कौन है ? जो नामधारी था न, यह नाम-रूप, यह सारा फिज़िकल ! और इस फिज़िकल के अलावा सूक्ष्म से लेकर अंत तक का बावा । प्रश्नकर्ता: फिर, जो क्रोध - मान-माया - लोभ करता है, वह भी बावा है ? दादाश्री : वह सब बावा । क्रोध - मान-माया - लोभ होते हैं तब भी बावा है और क्रोध-: - मान-माया - लोभ को जीत ले, तब भी बावा । जीत ले तो संयमी कहलाता है । प्रश्नकर्ता : बावा ही संयमी कहलाता है ? दादाश्री : हाँ ! संयमी अर्थात् वह असंयम नहीं करता, इसलिए वह विशेषण मिला। जिसके विशेषण बदलते रहें, वह बावा है । दो मन : 'बावा' का और 'मंगलदास' का एक मन बावा का है और एक मन मंगलदास का है। देयर आर टू माइन्ड्स। मंगलदास को जो विचार आते हैं, बावा उन्हें देख सकता है । अतः जिन विचारों को बावा देख सकता है, वह मन बावा का नहीं है और जिस मन को जान नहीं पाता, वह बावा का है। जो उसका खुद का मन है, उसे वह खुद नहीं जान सकता । वह तो, जब कोई समझाए तब । प्रश्नकर्ता : तो जब बावा मन में तन्मयाकार हो जाता है, तब उसे वह जान नहीं सकता ? दादाश्री : मन में जो विचार आते हैं, बावा उनमें तन्मयाकार हो जाता है, तब फिर वह मंगलदास बन जाता है और अगला जन्म उत्पन्न होता (मिलता) है। अतः मन साफ नहीं हो पाता लेकिन यदि बावा
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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