________________
[६] निरालंब
३८१
दादाश्री : नहीं। एब्सल्यूट होने के बाद ही निरालंब हो सकते हैं। अतः जहाँ से एब्सल्यूट की शुरुआत हुई, उसके बाद से संपूर्ण एब्सल्यूट केवलज्ञान होने तक एब्सल्यूट स्थिति है। एब्सल्यूट की बिगिनिंग भी है और एन्ड भी है।
जहाँ निरालंब दशा, वहाँ निर्भयता, वीतरागता
आत्मा निरालंब है, बिल्कुल निरालंब है। वह ऐसा है कि उसे कोई भी चीज़ टच नहीं हो सकती। आपमें ऐसा आत्मा है और इनमें भी वैसा ही आत्मा है। फाँसी पर चढ़ा दिया जाए तो भी शरीर फाँसी पर चढ़ेगा, आत्मा नहीं। बोलो अब, वह आत्मा कैसा होगा? देह को बींध ले तो भी आत्मा नहीं बिंधता। बोलो फिर, जिसे ऐसा आत्मा प्राप्त हो गया है, उसे फिर कोई भय है?
प्रश्नकर्ता : बिल्कुल नहीं। फिर भय कैसा?
दादाश्री : पूरे जगत् में कोई चीज़ ऐसी नहीं है कि जो निरालंब को स्पर्श कर सके। चारों ओर एटम बम फट रहे हों और वह उनके बीच में हो, फिर भी निरालंब को स्पर्श नहीं कर सकेंगे।
निरालंब वही केवलज्ञान स्वरूपी आत्मा
गजसुकुमार मूल आत्मा के आधार पर सिगड़ी का ताप झेल सके थे। मनुष्य ऐसा प्रयोग करके देखे तो सही? अरे, कोई ज्ञानी भी ऐसा नहीं कर सकते। गजसुकुमार को तो अंतिम मूलभूत आत्मा प्राप्त हो गया था, नेमिनाथ भगवान से प्राप्त हुआ था।
प्रश्नकर्ता : नेमिनाथ भगवान ने गजसुकुमार को जो ज्ञान दिया था, क्या वह बहुत ही अलग प्रकार का ज्ञान था?
दादाश्री : हमें उस प्रकार का ज्ञान है लेकिन शरीर की उतनी स्थिरता नहीं है क्योंकि उनकी तो भगवान से ही बात हुई थी। नेमिनाथ भगवान की कृपा उतरी थी सीधी। वर्ना ज्ञान तो, जो हमारे पास है, वही ज्ञान था। अंतिम ज्ञान।