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________________ [६] निरालंब सिर्फ ‘केवल' ज्ञाता-दृष्टा - परमानंद, वही परम ज्योति है । 'केवल ! ' मिलावट वाला नहीं। शुद्ध ! वह परम ज्योति है और वह ज्योति हमने देख ली है और निरालंब हो चुके हैं। इसके बावजूद भी आलंबन में रहते हैं। वर्ना अंतिम बात, ठेठ तक की बात प्रकट नहीं होती । ठेठ तक की यह बात आज प्रकट हुई है । I ३५५ प्रश्नकर्ता : 'निरालंब रहते हैं फिर भी आलंबन में हैं', इसे ज़रा ज़्यादा समझाइए न। दादाश्री : लेना ही पड़ेगा न अवलंबन । ऐसा है न कि हम अपने स्वभाव को लेकर निरालंब में रहते हैं और इस विशेषभाव में अर्थात् देह भाव में अवलंबन है । वह (देह भाव वाला) अवलंबन वाला रौब मारता है तो उस समय 'हम' निरालंब हो जाते हैं, बस । जब तक रौब नहीं मारता तब तक अवलंबन में रहते हैं । वह रौब मारे तब हम निरालंब हो जाते हैं। उससे क्या कहते हैं कि 'बस, बहुत हो गया। आइ डोन्ट वॉन्ट' । रौब मारने का मतलब समझ गए ? प्रश्नकर्ता : हाँ समझ गया । दादाश्री : बस, इतने तक ही ऐसा करते हैं । प्रश्नकर्ता : अर्थात् यह जो 'आइ डोन्ट वॉन्ट', वह बहुत महत्वपूर्ण चीज़ है लेकिन उसमें से ऐसा होता है, 'देन वॉट डू यू वॉन्ट ?' दादाश्री : 'वॉन्ट' नहीं करता है न यह। वह तो उसे समझाने के लिए यह वाक्य बोलना पड़ता है । वह समझता है कि मेरे बगैर चलेगा या नहीं? लेकिन मैं निरालंब हूँ तो फिर नहीं चलेगा क्या? यह तो अगर तू कहे कि मुझे सहारा दीजिए, तो मैं हाथ लगाकर सहारा दूँगा । अगर खिसक जाएगा तो सहारा मिलेगा ? तू प्रश्नकर्ता : निरालंब होने का प्रयत्न करते हैं लेकिन फिर भी कई बार हो नहीं पाते। दादाश्री : नहीं हो सकते। अभी तो, वह कहीं ऐसी स्थिति नहीं
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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