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[६] निरालंब
के मार्ग में प्रवेश हो गया। अब आपका प्रवेश तब पूर्ण होगा जब निरालंब आत्मा मिल जाएगा ।
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प्रश्नकर्ता : अब शुद्धात्मा हो जाने के बाद में फिर और किसी अवलंबन की ज़रूरत है क्या ?
दादाश्री : नहीं, इन सभी अवलंबनों को छुड़वाकर शुद्धात्मा का अवलंबन दिया है। इस अवलंबन में सभी कुछ आ गया और वे सारे अवलंबन छूट गए। फिर यह जो अवलंबन बचा है, वह अपने आप ही छूट जाएगा। यह शुद्धात्मा शब्दावलंबन है । वह शब्द भी अपने आप ही छूट जाएगा और निरालंब हो जाओगे।
प्रश्नकर्ता : तो फिर आपने जब इस अवलंबन को सब से अच्छा और श्रेष्ठ कहा है तो फिर मान लीजिए कि अगर दूसरी सब क्रियाएँ नहीं हो पाएँ तो कोई हर्ज है क्या ?
दादाश्री : नहीं। अगर कुछ नहीं हो पाए तो उसमें भी हर्ज नहीं है और यदि हो जाएँ तो उनमें तन्मयाकार होकर खिंच नहीं जाना है, अंदर देखते रहना है।
कितने ही अवलंबनों को छोड़ते-छोड़ते आगे बढ़ेगा तब निरालंब आत्मा उत्पन्न (प्राप्त) होगा, जिसे केवल आत्मा कहा जाता है । फिर वहाँ पर बात की पूर्णाहुति हो जाती है । कितने स्टेशन गुज़र जाने के बाद फिर निरालंब का अंतिम स्टेशन आता है और आपका वह आ ही जाएगा। जल्दबाज़ी करने की कोई ज़रूरत नहीं है, और अगर जल्दबाज़ी करनी हो तो सभी में ‘मैं’–‘मैं' देखते हुए चलते जाना न । सभी में 'मैं हूँ, मैं हूँ, मैं हूँ' वाणी में, मन में, चित्त में।
परावलंबन - आलंबन - निरालंबन
प्रश्नकर्ता : अवलंबन की तो ज़रूरत नहीं है लेकिन ऐसी स्टेज आएगी किस तरह से ?
दादाश्री : अगर आपको वह स्टेज चाहिए तो आएगी, निरालंब