SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [६] निरालंब दादाश्री : सभी खुराक से जी रहे हैं। प्रश्नकर्ता : तो क्या आत्मा की खुराक नहीं होती? दादाश्री : नहीं। सभी चीज़ों की खुराक है और यह खुराक की खोज मेरी है। यह निराली खोज है मेरी। अभी तक किसी ने इसे खुराक नहीं कहा है और यह खोज भी नहीं की है कि क्रोध की खुराक होती है। प्रश्नकर्ता : खुराक नहीं कहते तो पुष्टि कहेंगे। दादाश्री : यह खोज अलग है। यानी कि इन सब की खुराक होती है। प्रश्नकर्ता : मैं क्या कहना चाहता हूँ कि यौवन में यदि यह पता चल जाए कि यह काम-क्रोध-लोभ वगैरह सभी की खुराक है, उसे ऐसा पता चलने लगे... दादाश्री : तब तो बहुत बड़ी बात कहलाएगी। प्रश्नकर्ता : इसलिए यह प्रश्न हुआ कि आत्मा की कुछ तो खुराक होनी चाहिए। दादाश्री : मूलतः उसकी खुराक है ही नहीं। उसकी खुराक यही है, जो है वह, दूसरी कोई खुराक है ही नहीं। वह खुद अपने आपसे ही जीवित रहता है। अपने आपके प्राण से ही जीवित रहता है। खुद खुद का ही सुख भोगता है, वैभव में है। ऐश्वर्य से जी रहा है। अन्य किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। प्रश्नकर्ता : आत्मा की खुराक क्या है ? दादाश्री : आत्मा की खुराक वह खुद निरंतर खाता है। उसके बिना एक क्षण भर भी नहीं टिक सकता। निरंतर ज्ञाता-दृष्टा, वही उसकी खुराक है। उस खुराक का फल क्या है? वह है, परमानंद। वह खुद के ही प्राण से जीवित रहता है। वह यों नाक के प्राण से जीवित नहीं रहता!
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy