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________________ [६] निरालंब प्लस-माइनस, प्लस - माइनस, प्लस - माइनस । मीठी चाय पी और वापस कुछ देर बाद अंदर तीखा या मीठा कुछ डालो। वापस उसका प्लसमाइनस करो, पूरे दिन यही झंझट । अरे भाई अपने घर चला जा न ! चल भाई! अब हमें यहाँ पर नहीं रहना है। अपने घर चल । यहाँ पर नहीं जमेगा इन लोगों के साथ, परदेशी लोगों के साथ । जमेगा इन परदेशी लोगों के साथ ? अपने घर चल। अत्यंत एश्वर्य है, किसी भी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। निरालंब, अवलंबन ही नहीं किसी प्रकार का और यहाँ पर तो अगर पिपरमिंट न हो तो कहेंगे, 'मेरा मुँह फीका हो गया है खारा हो गया है'। अरे छोड़ न भाई । मुँह अच्छा हो, नाक अच्छी हो, आँखें अच्छी हों, इन्हीं के आधार पर जीवन जीना है क्या तुझे ? छोड़ । देखो दादा किसमें रहते हैं ? निरालंब स्थिति में । दादा के पास आज वह स्थिति है, दादा ऐसे हैं कि बिना अवलंबन के जी सकते हैं क्योंकि उन्होंने निरालंब आत्मा को देखा है । I निरालंब आत्मा कैसा होता है ? ३२१ प्रश्नकर्ता : वह अद्भुत दर्शन क्या है ? दादाश्री : अद्भुत, वह गुप्त स्वरूप है ! वह पूरी दुनिया से गुप्त है, गुप्त स्वरूप है। पूरी दुनिया उस गुप्त स्वरूप को जानती ही नहीं है, वह अद्भुत है। उससे अधिक अद्भुत वस्तु इस दुनिया में हो ही नहीं सकती। अद्भुत तो इस दुनिया में कोई भी चीज़ है ही नहीं न! बाकी सभी चीज़ें मिल सकती हैं। जो गुप्त स्वरूप है न, वही अद्भुत है इस दुनिया में। शास्त्रकारों ने उसे अद्भुत, अद्भुत, अद्भुत करके, लाखों बार अद्भुत, अद्भुत लिखा है। प्रश्नकर्ता : शब्द ब्रह्म है न ? शब्दों में ही अलग-अलग प्रकार से प्रदर्शित करते हैं। लेकिन उन शब्दों का स्फोट होना चाहिए। दादाश्री : शब्दों का स्फोट हो ही चुका होता है । यदि वास्तविक हो, यदि अनुभव करवाने वाला हो तो इन शब्दों का स्फोट हो चुका होता है, बाकी के सभी शब्द गलत हैं। जो शब्द कुछ भी अनुभव नहीं
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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