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________________ [५.२] चारित्र ३०९ मन टकराए नहीं तो कहा जाएगा कि चारित्र बलवान है। मन नहीं टकराए, बुद्धि नहीं टकराए, चित्त नहीं टकराए और अहंकार भी नहीं टकराए, शरीर नहीं टकराए, एडजस्ट एवरीव्हेर। प्रश्नकर्ता : मन नहीं टकराए, बुद्धि नहीं टकराए, वह ज़रा समझाइए। दादाश्री : किसी के साथ दखल नहीं हो। टकराव नहीं हो। हम से किसी को चिढ़ न मचे, किसी को दुःख न हो, किसी को त्रास न पहुँचे तो इसका मतलब यह है कि वह एवरीव्हेर एडजस्ट हो चुका होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : टकराने के बाद प्रतिक्रमण कर ले तो चारित्र ही कहलाएगा न? दादाश्री : नहीं। वह तो चारित्र में जाने की निशानी है। प्रश्नकर्ता : चारित्रवान और शीलवान में क्या अंतर है? दादाश्री : शीलवान पूर्ण चारित्र वाला होता है। चारित्रवान अर्थात् अंश शीलवान और शीलवान अर्थात् सर्वांश शीलवान । अतः यह ज्ञान है इसलिए आपमें चारित्र आएगा, वर्ना चारित्र तो हो ही नहीं सकता न? ध्यान और तप उलझनें ही खड़ी करते रहते हैं। प्रश्नकर्ता : चारित्र और संयम में क्या अंतर है दादा? दादाश्री : चारित्र और संयम में तो बहुत अंतर है! चारित्र का मतलब है कि किसी को भी किंचित्मात्र भी दुःख न हो, टकराव न हो, जबकि संयम तो? असंयम को रोकना, उसे संयम कहते हैं। वह तो यों व्यवहार में संयमी व्यक्ति कहलाएगा। लेकिन अब इस ज्ञान के बाद संयम आने लगा है। चारित्र से लेना-देना नहीं है। चारित्रवान को देखकर लोग खुश हो जाते हैं।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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