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________________ २८० आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) है। चेतन ज्ञान कौन सा कहलाता है ? अपना ज्ञान चेतन ज्ञान है जिसके समझ में आने के बाद ज्ञान हो जाता है। जबकि उस (क्रमिक ज्ञान) से पहले समझ में आता है। भान होता है कि यह कुछ है। भान होता है कि कुछ है। वह ज्ञान भान होने के लिए है। फिर भी लोगों को भान नहीं होता है न! देखो न, लाखों सालों से भटक ही रहे हैं न लोग! और 'मैं चंदूभाई, चंदूभाई' बोलकर भटक ही रहे हैं न! 'मैं चंदूभाई हूँ, इस स्त्री का पति हूँ और इसका मामा हूँ और इसका चाचा हूँ!' प्रश्नकर्ता : चंदूभाई बनने का अभ्यास पूर्ण होने से पहले तो फिर उपदेशक बन जाते हैं। दादाश्री : जहाँ देखो वहाँ पर यही का यही अभ्यास, परेशानी मोल लेनी है न! अतः जगत् में ज्ञान-दर्शन और चारित्र है। अपना तो अक्रम है, अतः दर्शन-ज्ञान-चारित्र है, इसीलिए अपना ज्ञान क्रियाकारी है। ज्ञान अपने आप काम करता ही रहता है, आपको कुछ भी नहीं करना पड़ता, अंदर ज्ञान ही करता रहता है। जबकि क्रमिक ज्ञान में खुद को कर्तापन रहता है, 'यह करना है लेकिन हो नहीं पा रहा है। और फिर 'नहीं हो पा रहा, नहीं हो पा रहा' गाता रहता है। ज्ञान अर्थात् जो ज्ञान शब्दों से समझना होता है, उसे ज्ञान कहते हैं वे लोग और उसमें से यदि अंदर सूझ पड़े तो वह दर्शन कहलाता है। अपने यहाँ तो पहले सूझ, फिर दर्शन और उसके बाद ज्ञान और चारित्र। अतः इस जगत् में कहीं पर भी क्रियाकारी ज्ञान नहीं है। क्रियाकारी ज्ञान सिर्फ अपने यहीं पर है कि 'ये चंदूभाई हैं, वे सो रहे हों फिर भी उनके अंदर ज्ञानक्रिया काम करती रहती है। आपमें ज्ञान काम करता रहता है न! 'यह मैं हूँ, यह मैं नहीं हूँ, ये चंदूभाई अलग हैं, यहाँ गलती हुई, चंदूभाई ने भूल की।' यों सारी ज्ञानक्रिया काम करती रहती हैं। ज्ञान ही काम करता रहता है। इसीलिए कहते थे न कि 'ज्ञान काम करता ही रहता है'। दादा
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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