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________________ २६८ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : सम्यक् दर्शन होने के बाद में फिर बिलीफ किस प्रकार से कही जा सकती है? दादाश्री : नहीं, नहीं। वह तो हम 'बिलीफ' शब्द कहकर परिचय करवाते हैं उसे। उसे सम्यक् दर्शन कहते हैं। लेकिन इन अंग्रेज़ी पढ़ेलिखे लोगों को 'बिलीफ' कहकर समझाते हैं। वर्ना बिलीफ तो व्यवहारिक चीज़ है, वह कोई मुख्य चीज़ नहीं है। सम्यक् दर्शन मुख्य चीज़ है लेकिन हम अंगुली निर्देश करने के लिए बिलीफ शब्द का उपयोग करते हैं। उसे पहचानने के लिए कुछ तो कहना पड़ेगा न? प्रश्नकर्ता : कहना चाहिए। इन्डिकेटर। दादाश्री : इन्डिकेटर। प्रश्नकर्ता : राइट बिलीफ ही सम्यक् दर्शन है न? दादाश्री : हाँ! आत्मा की प्रतीति बैठना, वही सम्यक् दर्शन है या आत्मा के अलावा कुछ और है ? तो कहते हैं, 'पुद्गल'। ऐसी प्रतीति बैठना, वह सब सम्यक् दर्शन है। प्रश्नकर्ता : अतः यह जो बिलीफ है न, क्या वह सामान्य मान्यता का शब्द है? दादाश्री : दर्शन तो बिलीफ से भी बहुत आगे की चीज़ है। अभी आपको अंदर चेतावनी देता है या नहीं? प्रश्नकर्ता : चेतावनी देता है। दादाश्री : हाँ, तो वह खुद, अनुभव हो जाने के बाद चेतावनी देता है। अब, उसे ज्ञान कहते हैं। और चारित्र कब कहा जाएगा? जब बाहर की दखलंदाजी न रहे तब चारित्र रहता है। नौकरी वगैरह कुछ ऐसा सब, कपड़े नहीं पहनने होते, बाकी कोई झंझट नहीं रहती। चारित्र अर्थात् ज्ञाता-दृष्टा, बस। लेकिन वह किसके ज्ञाता-दृष्टा? 'चंदूभाई क्या कर रहे हैं' आप उसके ज्ञाता-दृष्टा। खुद की प्रकृति के ज्ञाता-दृष्टा रहना, उसे कहते हैं चारित्र।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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