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________________ २५४ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) दादाश्री : राग-द्वेष निकल नहीं गए हैं, आपने नहीं निकाले हैं वह तो आत्मा प्राप्त होने की निशानी है। सभी ज्ञानियों का पुरुषार्थ एक सरीखा 'कोई अगर गालियाँ दे रहा है तो किसे दे रहा है', वह मुझे पता है। उसका मुझ पर असर नहीं होता। प्रश्नकर्ता : अगर फूल-माला पहनाए, सम्मान करे तब भी ऐसा ही रहता है? दादाश्री : नहीं, उस समय चेहरे पर हँसी आ जाती है, उसे भी हम जानते हैं। चेहरे पर स्मित आ जाता है, अंदर लागणियाँ (लगाव, भावुकता वाला प्रेम) उमड़ती हैं, उसे भी हम जानते हैं। प्रश्नकर्ता : आपने कहा कि हम पर कोई असर ही नहीं होता, तो वह जो असर नहीं होता तो क्या वह इसलिए है कि संपूर्ण रूप से जुदापन रहता है या इसलिए कि अंदर ऐसी प्रक्रिया होती है ? दादाश्री : प्रक्रिया-व्रक्रिया कुछ भी नहीं। पहले क्या होता था कि ज्ञाता और ज्ञेय एक ही हो जाते थे और अब अलग रहते हैं। प्रश्नकर्ता : ज्ञानी को फूल-माला पहनाने पर उनके चेहरे पर स्मित आ जाता है, उसे भी खुद जानते हैं। दादाश्री : मुस्कुराते हैं, इतना ही नहीं लेकिन लागणियाँ वगैरह भी सारी अज्ञानी जैसी ही दिखाई देती हैं और उनको भी वे खुद देखते और जानते हैं। प्रश्नकर्ता : ये लागणियाँ भी पूर्वकर्म का उदय मानी जाएँगी? दादाश्री : हाँ, पूर्वकर्म का उदय मानी जाएँगी। आज का ज्ञान यह देखता है कि पहले के ज्ञान का क्या असर हो रहा है। प्रश्नकर्ता : भगवान महावीर जो कि संपूर्ण वीतराग हैं, क्या उन्हें भी ऐसा ही रहता है?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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