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________________ [४] ज्ञान-अज्ञान २४५ प्रश्नकर्ता : वह तो अनादि से चला आया है न, उसमें किसी को क्या सिखाना? दादाश्री : जब वास्तविक ज्ञान होगा तब भगवान दिखाई देंगे। प्रश्नकर्ता : हाँ, वह बात तो स्पष्ट ही है न! दादाश्री : उसी से मोक्ष होगा। वास्तविक ज्ञान चेतन होता है और मायावी ज्ञान चेतन नहीं होता। आप जानोगे लेकिन कुछ होगा नहीं। क्रिया कुछ नहीं हो पाएगी, बस इतना ही है कि जानते हैं। जबकि चेतन ज्ञान जान लेने के बाद अपने आप ही होता रहता है। वास्तविक ज्ञान किसे कहते हैं ? जिसे जान लेने के बाद वैसा हो ही जाता है, अपने आप ही होता जाता है। हमें करना नहीं पड़ता। हम रास्ते पर जा रहे हों, इधर-उधर देखकर चल रहे हों और अचानक नीचे साँप देखें तो उस क्षण क्या क्रिया होती है? वह अचानक कूद जाता है। देखा भी अचानक और कूदता भी अचानक है। ज्ञान का फल है यह। उसका सही ज्ञान नहीं होता तो नहीं हो पाता। प्रश्नकर्ता : तो दादा, ज्ञान कितने प्रकार के हैं ? दादाश्री : ज्ञान के बहुत प्रकार हैं ही नहीं। एक अज्ञान ज्ञान है, जो ज्ञान-अज्ञान के रूप में है और दूसरा विज्ञान-ज्ञान है। बस, दो ही प्रकार हैं। प्रश्नकर्ता : इन दोनों के बारे में समझाइए। दादाश्री : जो जानने के बावजूद भी जीवंत नहीं है, जो ज्ञान जीवंत नहीं है, वह अज्ञान ज्ञान कहलाता है। वह कार्यकारी नहीं होता, ज्ञान खुद कार्यकारी नहीं होता, हमें करना पड़ता है। जितना जानते हैं, वह हमें करना पड़ता है। जो ज्ञान खुद ही क्रियाकारी होता है, वह विज्ञान कहलाता है और वह चेतन ज्ञान कहलाता है। प्रश्नकर्ता : एक उदाहरण दीजिए न दादा।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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