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________________ जब तक आत्मा का स्पष्ट अनुभव नहीं हो जाता तब तक ज्ञानीपुरुष ही मेरा आत्मा है। फिर वे भूले ही नहीं जा सकते। प्रशस्त राग प्रत्यक्ष मोक्ष का कारण है। कितने ही लोग प्रशस्त राग को भला-बुरा कहते हैं। कहते हैं कि उससे केवलज्ञान रुक जाता है! अब ऐसा कहने वाले को अभी तक आत्मज्ञान भी नहीं मिला होता! भगवान महावीर के प्रति गौतम स्वामी के प्रशस्त राग को खूब भला-बुरा कहा गया है! अरे, प्रत्यक्ष भगवान पर ऐसा राग होना क्या कोई ऐसी-वैसी बात है ? पत्नी, बच्चों और पैसों के अलावा और कहीं पर राग हुआ है ? गौतम स्वामी को भगवान के प्रति प्रशस्त राग था इसलिए अंत में भगवान महावीर ने ही खटपट की, उन्हें केवलज्ञान प्रकट करवाने के लिए। अर्थात् इससे ज्ञान रुकता नहीं है। थोड़ी देर लगती है तो उससे क्या बिगड़ गया? ज्ञानी पर पौद्गलिक राग होता है ? यदि हो जाए तब भी टिकता नहीं है। वह प्रशस्त राग में परिणामित हो ही जाता है। राग संसार में भटकाता है और प्रशस्त राग मोक्ष में ले जाता है। प्रशस्त राग और प्रशस्त मोह में क्या फर्क है? प्रशस्त राग निकल सकता है जबकि मोह गाढ़ होता है। उसे जाने में देर लगती है। राग पकड़ी हुई चीज़ है और मोह चिपकी हुई चीज़ है। ज्ञानी के प्रति जो भक्ति भाव है वह, इन चार कषायों में से लोभ में जाता है लेकिन वह कपट वाला लोभ नहीं है ! वास्तविक राग तो वह है जिसमें कपट और लोभ दोनों ही होते हैं। इस प्रशस्त राग में सिर्फ लोभ ही है। जगत् कल्याण की भावना, वह भी प्रशस्त राग है अर्थात् कपट रहित लोभ है। भगवान सीमंधर स्वामी के दर्शन होते ही प्रशस्त राग अपने आप ही छूट जाएगा। यह जो प्रशस्त राग है, वह अंतिम अवलंबन है, निरालंब होने तक। महात्माओं के प्रति जो राग होता है, वह भी प्रशस्त राग है! 31
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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