________________
२३४
आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
अज्ञान ही बड़ा आवरण प्रश्नकर्ता : अज्ञान के अलावा अन्य कौन से आवरण होते हैं ?
दादाश्री : अज्ञान तो बहुत बड़ा आवरण है। पूरा जगत् उसी में फँसा हुआ है और भगवान भी उसी में फँस गए थे। अज्ञान आवरण क्या कोई छोटा-मोटा आवरण है? ।
हाँ, लेकिन इतने शास्त्र पढ़ने के बावजूद भी ज़रा सा भी नहीं हटता। ऐसा जो अज्ञान आवरण है उसकी तो बात ही कितनी बड़ी? उसकी बाउन्ड्री कितनी बड़ी?! कुछ और क्यों ढूँढ रहे हो?
अन्य कोई आवरण है ही नहीं लेकिन इतना अज्ञान है फिर भी नाभिप्रदेश ज़रा सा खुला है। जितना खुला है उतना ही जीवन व्यवहार चलता है। वर्ना घोर अज्ञानता है। सारा आवरण ही है यह तो, अज्ञान ही है। उसके चाहे जितने टुकड़े करो तो भी वह अज्ञान ही है।
ज्ञानी ही समझा सकते हैं ज्ञान प्रश्नकर्ता : ज्ञानीपुरुष को जो ज्ञान होता है, वह समझाया नहीं जा सकता?
दादाश्री : उसे समझाना आसान नहीं है। ज्ञान तो इन्हें भी हुआ है लेकिन वह समझाया नहीं जा सकता। सिर्फ हम ही समझा सकते हैं, या फिर ये नीरू बहन थोड़ा-बहुत समझा सकती हैं ! जिन्हें अधिक परिचय हो, वे थोड़ा-बहुत समझा सकते हैं। ये भाई ज़रा सा, बहुत ही कम समझा सकते हैं लेकिन समझा सकते हैं! परिचय में आए है न! अतः हमारे साथ अधिक परिचय रखना चाहिए तो सभी कुछ समझा सकोगे!
ज्ञान प्राप्ति का एकमात्र साधन... प्रश्नकर्ता : ज्ञान प्राप्ति का साधन क्या है? दादाश्री : यहाँ पर कैन्डल हो तो हमें उजाला दिखाई देता है।