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________________ २३२ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) है, और ज्ञान अलग चीज़ है। जो समझ में आता है, वह फिर आचरण में आता है। अगर समझ नहीं हो तो चाहे कितना भी ज्ञान प्रकाश बताएँ फिर भी आचरण में नहीं आएगा। अज्ञान किस प्रकार से पुद्गल है? प्रश्नकर्ता : 'अज्ञान पुद्गल है, ज्ञान पुद्गल नहीं है', ऐसा कैसे कह सकते हैं? दादाश्री : मन, पुद्गल है और अज्ञान दशा के कुतूहल का परिणाम है। मन अज्ञान परिणाम की गाँठ है जबकि ज्ञान परिणाम की गाँठें नहीं होतीं। प्रश्नकर्ता : तो फिर ज्ञान परिणाम में मन का क्या होता है? दादाश्री : कुछ भी नहीं। ज्ञान परिणाम सूर्य किरण जैसा होता है। वह ज्ञेय रूपी परिणाम दिखाता है। ज्ञेय को ज्ञान ज्ञेयाकार स्वरूप दिखाता है, बस इतना ही। राग-द्वेष हों तभी मन उत्पन्न होता है और तभी वह अज्ञान कहलाता है। प्रश्नकर्ता : तो फिर आप ज्ञान किसे कहते हैं ? अज्ञान तो समझ में आया। अज्ञान राग-द्वेष का परिणाम है। और ज्ञान? दादाश्री : वीतरागता। कहीं भी न चिपके तो गाँठ नहीं बनती। प्रश्नकर्ता : तो फिर वह ज्ञान, क्या वह चेतन है ? दादाश्री : ज्ञान चेतन है। अज्ञान चेतन तो है लेकिन मिश्रचेतन है। प्रश्नकर्ता : तो फिर ज्ञान की अच्छी गाँठें क्यों नहीं बनती? दादाश्री : ज्ञान की कभी गाँठे बनती होंगी? ज्ञान को तो प्रकाश कहते हैं। प्रकाश में गाँठे होती ही नहीं हैं न? जब उसमें पुद्गल मिलता है, तब गाँठ बनती है। प्रश्नकर्ता : अब समझ में आया। जब पुद्गल अज्ञान परिणाम में एकाकार होता है, तभी गाँठे बनती हैं।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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