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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
प्रश्नकर्ता : तो जो समझकर भरा हुआ हो वह सहज रूप से आ जाता है?
दादाश्री : सहज रूप से आ जाए तभी वह विज्ञान कहलाएगा, नहीं तो वह विज्ञान कहलाएगा ही नहीं।
ज़रूरी है 'बंधन का ज्ञान' होना अभी तक तो जानते नहीं हैं कि 'मैं बंधन में आ गया हूँ'। जब ऐसा जाने कि 'मैं बंधन में हूँ', तब समझना कि इस व्यक्ति में कुछ उच्च समझदारी है। जब से जानने लगता है कि 'बंधन में हूँ, तभी से वह मुक्ति की आराधना करने लगता है। नहीं तो करेगा ही नहीं न! यह न तो बंधन में आया है, न ही मुक्त हुआ है।
न तो इसमें कोई फायदा उठा सका, न ही मोक्षमार्ग में आ सका। न संसार अच्छा दिखाई दिया, संसार में बेहद आधि-व्याधि-उपाधि और न ही मोक्षमार्ग की बात हुई।
___ हिंदुस्तान में एक भी व्यक्ति, ज्ञान तो भले ही एक तरफ रहा लेकिन अगर अज्ञान भी जान सके तो, मैं उसके दर्शन करने को तैयार हूँ। अभी तक कोई अज्ञान को भी संपूर्ण रूप से नहीं जान सका है क्योंकि जो अज्ञान को संपूर्ण रूप से जान ले, वह उसके सामने वाले किनारे पर रहे ज्ञान को समझ जाएगा। जैसे अगर गेहूँ को पहचान ले तो कंकड़ों को समझ जाएगा और अगर कंकड़ को पहचान ले तो गेहूँ को पहचान जाएगा। दोनों को नहीं सीखना पड़ेगा, एक को ही सीखना पड़ेगा।
पौद्गलिक ज्ञान को अज्ञान कहा जाता है और आत्मज्ञान को ज्ञान कहा जाता है। यदि पुद्गल का पूरा ज्ञान नहीं होगा तो आत्मा का ज्ञान नहीं हो पाएगा क्योंकि उसमें गलतफहमी हो जाती है। अतः दोनों को मिलावट रहित बनाने के लिए दोनों ज्ञान की ज़रूरत है। सिर्फ आत्मा ही मिलावट रहित नहीं बन सकता। यदि पुद्गल का ज्ञान नहीं होगा तो फिर थोड़ा-बहुत मिलावट वाला हो जाएगा।