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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
क्रोध-मान-माया-लोभ खड़े हो गए। उनमें से क्रोध और मान से 'मैं' बना और लोभ और कपट से 'मेरा' बना।
प्रश्नकर्ता : ये जो व्यतिरेक गुण उत्पन्न हो गए हैं, क्या इसलिए अज्ञान उत्पन्न हो गया?
दादाश्री : व्यतिरेक गुण ही अज्ञान हैं। अगर वे नहीं होते तो कुछ भी नहीं है। इन दोनों के मिलने से ही खड़ा हुआ है।
प्रश्नकर्ता : विज्ञान में से ज्ञान और अज्ञान कैसे उत्पन्न हुए?
दादाश्री : यह विज्ञान अर्थात् आत्मा। ये छः वस्तुएँ इकट्ठी हो गई, इन छ: में से एक आत्मा भी है, इन छ: वस्तुओं का समसरण होता रहता है, निरंतर परिवर्तन होता रहता है। परिवर्तन में वे मिलते हैं, उसी से ये सारे व्यतिरेक गुण उत्पन्न हो गए।
अतः इन छः वस्तुओं के मिलने से, व्यतिरेक गुण उत्पन्न हो गए और व्यतिरेक गुणों से ही यह पूरा संसार बना है। छः वस्तुओं को अलग करने पर व्यतिरेक गुणों के खत्म होते ही यह सबकुछ खत्म हो जाएगा।
अहंकार की उत्पत्ति प्रश्नकर्ता : लेकिन अगर यह अहंकार नहीं होता तो आत्मशोध किस तरह से हो पाती? सापेक्ष तो है ही न कुछ??
दादाश्री : वह होता या नहीं होता, यह तो अज्ञानता का स्वभाव है कि अज्ञानता के बिना अहंकार खडा ही नहीं रहता। जब तक अज्ञानता थी तब तक हमें भी अहंकार था।
प्रश्नकर्ता : अहंकार कहाँ से आया और किसे आया?
दादाश्री : 'कहाँ से आया और कब', ऐसा नहीं है। जो यह सब भुगत रहा है, वह अहंकार है।
प्रश्नकर्ता : अहंकार किसे हुआ?