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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
रखना है, प्रज्ञा क्या करती है, अब दादा उससे भी आगे की स्पष्टता करते जा रहे हैं।
दादाश्री : समझ में आ गया है न?
प्रश्नकर्ता : हाँ दादा, आप बहुत साफ-साफ, स्पष्टता से समझा रहे हैं। दादा अगर अब भी नहीं समझेंगे तो हमारे जैसा मूर्ख इस जगत् में कोई भी नहीं कहलाएगा।
दादाश्री : नहीं। बाद में मिलेगा ही नहीं यह... प्रश्नकर्ता : नहीं मिलेगा।
दादाश्री : इतने बड़े समुद्र में यह रत्न फिर से नहीं मिलेगा, अगर खो गया तो...
प्रश्नकर्ता : दादा, मुझे तो आज ऐसा लग रहा था कि हम कितने मूर्ख हैं! हमें हमारा स्वच्छ करने की बिल्कुल भी नहीं पड़ी है। दादा को ही रात-दिन हमारा यह सब स्वच्छ करने की पड़ी है।
दादाश्री : और नहीं तो क्या? हमारी इच्छा ऐसी है न कि हमारे लिए कुछ भी किया हो, उसने हमें चाय पिलाई हो, तो उसे भी लाभ हो।