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________________ [३] मैला करे वह भी पुद्गल, साफ करे वह भी पुद्गल प्रश्नकर्ता : उसका संशोधन कर रहा हूँ, गलती पकड़ में नहीं आ रही। १८५ दादाश्री : उससे तुझ पर क्यों असर हो जाता है ? तो फिर पकड़ में आई क्या? जो पकड़ में आया वह भी पुद्गल, नहीं पकड़ में आया वह भी पुद्गल और पकड़ने वाला भी पुद्गल । 'तू' सिर्फ जानने वाला, इसमें तुझे क्या लेना-देना? तू तो पकड़ने लगा था न ! ऐसा हुआ ? प्रश्नकर्ता : ऐसा ही हुआ है । चारों ओर से एकदम से फाइलें आ गईं इसलिए फिर फाइल नंबर वन का थोड़ा बहुत एनालिसिस किया । तो सफोकेशन और भी ज़्यादा बढ़ गया । फिर किस कारण से इसका ऐसा है, वह अभी भी समझ में नहीं आ रहा है। दादाश्री : लेकिन तू आधार पकड़ने वाला क्यों बन जाता है ? तू जान। तू तो पकड़ने वाला बना इसलिए बोझ बढ़ गया, इसलिए मुँह बिगड़ गया। प्रश्नकर्ता : लेकिन यह उत्पन्न कहाँ से हुआ ? वह देखने जाता हूँ । दादाश्री : अरे, पुद्गल में से उत्पन्न हुआ, पुद्गल में से उत्पन्न होगा। जो था वही का वही सामान । कुछ नया सामान आने वाला है नहीं। इतना तो बता दिया है, फिर भी ऐसा क्यों कर रहा है ? प्रश्नकर्ता : अब से ऐसी भूल नहीं होगी । दादाश्री : लेकिन चंदूभाई का क्या दोष ? 'हम' उसमें घुस जाते हैं न! यह ढूँढने अंदर गया कि इसका मूल कारण क्या है ? वह जानने की ज़रूरत है, हमें ढूँढने नहीं जाना है । उसके लिए तो डी.एस.पी. को भेज देना। डी.एस.पी. से कहना कि 'जाइए, जाँच कीजिए ।' डी.एस.पी. की बजाय हम चले जाएँ तो क्या होगा ? और पूरे दिन अंदर तनख्वाह डी.एस.पी. खाता रहता है, आइस्क्रीम खाता है, फँला खाता है । अब नहीं होगी न गलती ?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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